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स्वस्थ्य की दृष्टि से मशरुम को सर्वोत्तम माना जा रहा है जिसके चलते मशरुम की मांग बाजार में बहुत अधिक है। अधिक मात्रा में प्रोटीन, विटामिन डी (vitamin D) जैसे पोषक तत्वों (nutrients) वाले मशरूम की खेती (mushroom farming) किसानों को काफी आकर्षित कर रही है. इस खेती में आपको न खेत की ज़रूरत है और न ही सिंचाई के लिए पानी की. ऐसे में कोई भी आसानी से कम जगह में भी मशरूम उत्पादन (Mushroom production) कर सकता है. इसका उत्पादन देश के कई राज्यों में किया जा रहा है। मशरुम की खेती बेरोजगारों और गृहाणिओ के लिए स्वरोजगार का एक अच्छा माध्यम हो सकता है।
मशरूम क्या है (mushroom definition)
मशरूम एक तरह का पौधा है, इसमें अधिक मात्रा में प्रोटीन एवं पोषक तत्व मौजूद होते हैं जैसे की विटामिन डी. यह फफूंद से बनता है और इसके आकार के बारे में कहा जाय तो लगभग एक छत्ते के आकार का होता है। मशरुम/Mushroom को हिंदी में खुम्भी, ढिंगड़ी और फुटु के नाम से जाना है, यह एक प्रकार का कवक या फफूंद होता है जो छतरी, खुम्भी नुमा आकार का होता है। जो अनेक माधयम जैसे पैरा कुट्टी, गेहू कुटी का उपयोग करके इसका खेती किया जा सकता है। मशरुम की खेती करने के लिए स्पॉन का उपयोग किया जाता है जिसे मशरुम के बीज के रूप में जाना जाता है।
यह मशरुम एक फफुुंदी पौधा है जो अपना भोजन दुसरे पदार्थ से ग्रहण करता है। विश्व भर में इसके 2000 प्रजातियाॅ पाई जाती है। जिनमें 200 प्रजातियाॅ भारत में उपलब्ध है। जिसमें से 20-22 प्रजातियाॅ खाने योग्य माना जाता है। मशरुम की खेती के लिए वातावरण में नमी होना आवश्यक होता है मशरुम की खेती के लिए 18 डिग्री से लेकर 30 डिग्री तक तापमान सर्वोत्तम माना जाता है।
घर पर मशरूम की खेती करने की प्रक्रिया (mushroom farming at home) :-
इसकी खेती करने के लिए आपको एक कमरे की जरुरत होती है, लेकिन आप चाहें तो लकड़ियों का एक जाल बनाकर भी उसके नीचे मशरूम उगाना आरम्भ कर सकते हैं. बाकी के सभी चरण (स्टेप्स) सभी स्तर के व्यापार के लिए एक जैसे होते हैं जिसको नीचे अच्छे से बताया जा रहा है ।
बटन मशरूम (Button Mushroom)-
बटन मशरुम की खेती के लिए तापमान बहुत कम होना चाहिए तापमान लगभग 14 से 18 डिग्री तक होना चाहिए एवं myceliam के ग्रोथ होने के लिए 22 से 25 डिग्री तक के तापमान में बटन मशरुम उत्पादन किया जा सकता है।
ऑयस्टर मशरुम/ढिंगरी मशरूम (Oyster Mushroom) –
ऑयस्टर मशरुम 18 डिग्री से लेकर 30 डिग्री तक तापमान में ऑयस्टरमशरुम का उत्पादन किया जा सकता है जैसे माह सितम्बर से माह मार्च तक ढिंगरी मशरूम या ऑयस्टर मशरुम की खेती किया जा सकता है।
दूधिया/मिल्की मशरूम (Milky Mushroom) –
मिल्की मशरुम 30 डिग्री से लेकर 45 डिग्री तक तापमान में मिल्की मशरुम का उत्पादन किया जा सकता है। जैसे माह मार्च से माह अगस्त तक मिलकी मशरूम की खेती किया जा सकता है। इस प्रकार पुरे वर्ष भर मशरुम की खेती किया जा सकता है।
समान्य नाम – ऑयस्टर मशरूम वैज्ञानिक नाम : – फ्लूयुरोटस ओएस्ट्रीएटसकुल
फ्लूयुरोटेसी भारत मे यह प्रजाति में लगभग 12 किस्मों को उगाया जाता है, जिसमे 3 मुख्य प्रकार कुछ इस तरह है
1. फ्लोरिडा – यह ऑयस्टर मशरूम आकार में बड़े एवं कम दिनों में प्राप्त हो जाता है। इसकी विशेषता ये है कि तापमान कुछ अधिक होने पर भी यह आसानी से विकास कर लेता है।
2. सेज़र काजु –यह ऑयस्टर मशरुम मध्यम आकार एवं कुछ मटमैले रंग के होते है।यह कम तापमान में अच्छा विकास करता है। इसका स्वाद अच्छा होता है।
3. गुलाबी ऑयस्टर –यह गुलाबी रंग के सुंदर दिखते हैं। इसका आकार सामान्य होता है एवं यह भी कम ताप में विकास करता है।
How to make mushroom compost at home
कुट्टी, पुआल या गेहू की भूषा का उपचार करना –
ऑयस्टर मशरूम की खेती के लिए एक माध्यम की जरुरत पड़ती है जैसे पैरा कुट्टी, पुआल या गेहू की भूषा इत्यादि का प्रयोग किया जा सकता है। पैरा कुट्टी का अधिक उपयोग किया जाता है पुआल या पैरा को 2 से 3 से. मी. छोटे टुकड़े करा कर प्रयोग करना चाहिए।
इन सभी मध्यमो को बीजाई करने से पहले उपचारित करना आवश्यक होता है जिससे पहले से मौजूद जीवाणु को ख़तम किया जा सके, जिससे मशरुम की फसल ठीक हो।
पैरा कुट्टी, पुआल या गेहू की भूषा को उपचारित करने की दो विधि है –
1. रासायनिक विधि और 2. गर्म पानी उपचार विधि
भूसा का उपचार भूसे में उपस्थित हानिकारक जीवाणुओ एवं अन्य बीजों का नाश करने हेतु भूसे का उपचार किया जाता है आप निम्नलिखित में से किसी एक विधि से भूसे का उपचार कर सकते है ।
आयस्टर मशरुम की खेती भूसे का उपचार रासायनिक विधि से
गर्म पानी उपचार विधि –
इस विधि में कृषि अवशेषो को छिद्रदार जूट के बोरे में भर कर रात भर गिला किया करना है तथा अगले दिन इस पानी को गर्म कर लगभग 30 – 45 मिनट तक उपचारित किया जाता है है। उपचारित भूसे को ठंडा करने के बाद बीज डाला जा।
रासायनिक विधि –
इस विधि में कृषि अवशेषो को विशेष प्रकार के कृषि दवाइओ से जीवाणु को मारा जाता है इस विधि में 100 लीटर ड्रम या टब में 90 लीटर पानी में 7.5 ग्राम बावस्टीन तथा 125 मि.ली फोर्मेलिन मिलाया जाता है। जिसमे लगभग २०-२५ किलो सूखे भूसे को पानी में डाला जाता है तथा ड्रम को ऊपर से पॉलीथिन से बांध दे तथा इसे 12 से 18 घंटे तक उपचारित करे। उपचारती भूसे को 4 से 8 घंटे तक खुले जगह छावदार जगह पर छोड़ दे जिसे इसके अतिरिक्त पानी बहार हो जाए तथा फोर्मे लीन की गंध भी बहार हो जाये।
1- Formalin (फोर्मेलिन) – 125 मि.ली (लगभग 20 से 25 किलो सूखे भूसे)
2- कार्बेन्डाजिम या बावस्टीन (Bavistin) – 7.5 ग्राम (लगभग 20 से 25 किलो सूखे भूसे)
3. ड्रम या टब – 90 लीटर पानी (लगभग 20 से 25 किलो सूखे भूसे)
4- पैरा कुट्टी, पुआल या गेहू की भूषा ( 20 से 25 KG)
1. सर्व प्रथम 200 लीटर वाले ड्रम में 100 लीटर पानी भर लेते है ।
2. फिर फॉर्मेलिन 125 ml और बाविस्टिन 7 gm को
3. ड्रम में डालकर अच्छे से डंडे की सहायता से मिलाते हैं।
4. 10 kg पैरा भूसा/गेंहू भूसा को डालकर हाथो की सहायता से डूबा देते हैं और ढक्कन लगाकर 16 घंटो के लिए छोड़ देते हैं।
5. 16 घंटे के बाद भूसा को निकालकर ढलाव वाली जमीन में चटाई के ऊपर छांव सुखा देते है ताकी अधिक
6. पानी बाहर निकल जाये और नमी 30% रह जाये।
7. नमी की प्रतिशत जानने के लिए भूसा को पकड़कर मुट्ठी में दबाये यदि भूसा से पानी ना निकले पर हथेली गीला हो तो भुसा बैग में भरने योग्य हो गया है।
8. बैग भरने के लिए सबसे पहले बैग में 4 – 6 इंच भुसा भर ले फिर उसे उल्टे पंजे से कसकर दबाये सभी तरफ फिर स्पान को चारों ओर किनारे पर छोड़ दे फिर पुनः 4-6 इंच भुसा भरकर उल्टे पन्जे से सभी तरफ दबाये और चारो ओर कीनारे पर बिजाई करें।यह क्रिया 5-6 बार दोहराये जब तक बैग 75% भर ना जायें।
9. जब बैग 75% भर जाता है तब बैग के मुंह को रबर या रस्सी से बांध देवें,और बैग के चारो ओर कुछ छेद कर देवें ताकी अतिरिक्त जल बाहर हो जाएं।
10. अब प्लास्टिक की रस्सी से सिकाई का निर्माण कर ले और सिकाई में मशरूम बैग को लटका दें।
11. मशरूम बैग को स्वच्छ एवं अंधेरे युक्त कमरे में ही लटकाना चाहिए,इसकी खेती में स्वच्छकता का विशेष ध्यान रखना होता है।
12. लगभग 20 दिन में माईसेलियम पूरी तरह फैल जाता है और लगभग 25 दिन में हमे पहला फसल प्राप्त हो जाता है।
13. फसल की तोड़ाई के लिए मशरूम को पकड़कर घड़ी की उल्टी दिशा में घुमाये ताकी बैग को कोई नुकसान ना हो,तुड़ाई के बाद प्लास्टिक बैग को ब्लेड की सहायता से फाड़कर अलग कर दे।
14. प्लास्टिक अलग होने के बाद सिंचाई की रोज़ अवश्यकता होती है सामान्य मौशम में प्रतिदिन 2 बार और गर्मी अधिक होने पर प्रति दिन 3-5बार सिंचाई जरूरी है।
15. फसल पहली तुड़ाई से 20 से 25 दिन तक प्राप्त कर सकते है।
आयस्टर मशरुम का बिजाई हमेशा ताजा प्रयोग करना चाहिए भूसा तैयार करने से पहले ही स्पॉन खरीद लेना चाहिए तथा एक कुंटल सूखे भूसे के लिए 10 किलो मशरुम बीच अर्थात स्पॉन की जरूरत होती है गर्मियों के मौसम में प्लूरोटस सजार काजू को उगाना चाहिए।
सर्दियों में जब वातावरण का तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से नीचे हो तो प्लूरोटस फ्लोरिडा, कोर्नुकोपिया मशरुम को उगाना चाहिए। बीजाई करने से पहले सबसे पहले स्पॉन खरीद कर रखना चाहिए।
स्पॉन खरीदते समय देख लेना चाइये की स्पॉन में कवक पूरी तरह फैला है की नहीं और अधिक पुराना नहीं होना चाहिए। 10 किलो भूसे में 1 किलो स्पॉन का प्रयोग करना चाहिए।बिजाई करने से दो दिन पहले बीजाई रूम को फोर्मे लीन से उपचारित कर लेना चाहिए।
बीजाई करने के लिए पीपी बैग का चुनाव कर बैग को 4 – 4 इंच की उपचारित पैरा भूषा से भरे 4 – 4 इंच की उचाई में स्पॉन की बिजाई करे। और अंत में बैग की ऊपरी सिरे को रबर बैंड से बांध दे और बैग में अलग अलग जगह में कुल 12 से 16 छिद्र बना दे।
बीजाई किये गए बैग को 15 दिनों तक एक रूम रखे जहा पर हवा अंदर बाहर ना हो, अंधेरा हो, बिना कारण कोई भी उस रूम में प्रवेश ना करे ।
क्योकि यह समय बैग में कवक जाल फैलने का होता आपके अच्छे फसल के लिए बैग में कवक जाल का फैलना अति महत्वपूर्ण है 15 दिनों बाद बैग में पानी डालना शुरू करे जिससे 20 से 25 दिन बाद मशरुम आना शुरू होगा।
बिजाई करने के पश्चात थैलियों को एक उत्पादन कक्ष में बीज फैलाने के लिए रख दिया जाता है।
बैगो को हफ्ते में एक बार अवश्य देख लेना चाहिए कि बीच फैल रहा है या नहीं यदि किसी बैग में हरा काला या नीले रंग की फाफुंद दिखाई दे तो ऐसे बैगों को उत्पादन कक्ष से बाहर निकाल कर दूर फेंक देना चाहिए।
बीज फैलाते समय हवा या प्रकाश की जरूरत नहीं होती है। अगर बैग तथा कमरे का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ने लगे तो कमरे की दीवारों तथा छत पर पानी का छिड़काव दो से तीन बार करना चाहिए ।
इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बैगो पर पानी जमा ना हो लगभग 15 से 25 दिनों में मशरूम का कवक जाल सारे भूसे पर फैल जाता है।
बैग सफेद रंग का प्रतीत होने लगता है इस स्थिति में पॉलिथीन को हटा लेना चाहिए गर्मियों के दिनों में पालीथीन को पूरा नहीं हटाना चाहिए क्योंकि बैगो में नमी की कमी हो सकती है।
उत्पादन कमरों में उत्पादन कमरों में प्रतिदिन दो से तीन बार खिड़कियां खुली रखनी चाहिए जिससे कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 800 पीपीएम से अधिक ना हो।
ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड होने से आष्टा का आकार बड़ा हो जाता है तथा छतरी छोटी रह जाती है। पालीथीन को खोलने के बाद लगभग 1 सप्ताह में मशरूम की छोटी-छोटी कालिया बनने लगती है जो 4 से 5 दिनों में पूर्ण आकार ले लेती है।
अपने कमरे में मशरूम की खेती करने के लिए आपको मशरूम वाले थैले को तरीकों से रखना होता है. इसे या तो आप किसी लकड़ी और रस्सी की सहायता से बांध कर लटका दें या फिर एक तरह से लकड़ियों या किसी धातु से पलंगनुमा जंजाल तैयार कर लें जिस पर मशरूम के पैकेट्स आसानी से रख सकें.
फसल में 20 से 25 दिन बाद मशरुम आना शुरू जायेगा। मशरुम की तुड़ाई हम हाथ से या चाकू से कर सकते है मशरुम की तुड़ाई करते समय ध्यान रखे की जिस मशरुम की छत्तरी ऊपर मुड़ने वही मशरुम तोड़ने लायक हो जाता है तुड़ाई हमेशा पानी छिड़काव करने से पहले करना चाहिए।
मशरूम तोड़ने के बाद डंठल के साथ लगे हुए भूसे को चाकू से काट कर हटा देना चाहिए पहली फसल के 8 से 10 दिन बाद दूसरी फसल आती है पहली फसल कुल उत्पादन का लगभग आधा या उससे ज्यादा होती है।
इस तरह तीन फसलों तक उत्पादन ज्यादा होता है उसके बाद बैग को किसी गहरे गड्ढे में डाल देना चाहिए जिससे उसे खाद बनाई जा सके तथा बाद में उसे खेतों में प्रयोग कर सके।
जितने भी मशरुम की व्यवसाई प्रजातियां है उनमें 1 किलो सूखे भूसे से लगभग औसतन 600 से 800 ग्राम तक पैदावार मिलती है।
ओयस्टर मशरूम तोड़ने के बाद उसे तुरंत पालीथीन में पैक नहीं करना चाहिए। अपितु लगभग 2 घंटे कपड़े पर फैलाकर छोड़ देना चाहिए।
जिससे कि उसमें मौजूद नमी उड़ जाए ताजा ओयस्टर मशरूम को पॉलिथीन में भरकर रेफ्रिजरेटर में 2 से 4 दिन तक रखा जा सकता है ओयस्टर मशरूम को ओवन में या धूप में सुखाकर वर्षभर उपयोग में लाया जा सकता है।
हवा एवं पंखे की सहायता से रख रखाव (mushroom cultivation precautions)
लगभग 15 दिन तक इस फसल को हवा लगने से बचाना पड़ता है, जिसके लिए आप कमरे को पूरी तरह से बंद कर दें. फिर 15 दिन के बाद इसी कमरे को खुला छोड़ दे या पंखे का भी इंतजाम कर दें. यहां तक आपको मशरूम की फसल सफेद रंग की नजर आने लगती है.
नमी एवं तापमान पर नियंत्रण (How to maintain humidity in mushroom cultivation)
नमी पर नियंत्रण करने के लिए आपको कभी-कभी दीवारों पर पानी का छिड़काव करना होगा, ध्यान रहे नमी लगभग 70 डिग्री तक की होनी चाहिए इसके बाद आपको कमरे के तापमान पर भी ध्यान देना बहुत जरुरी है. मशरूम की फसल को अच्छे से उगाने हेतु लगभग 20 से 30 डिग्री का तापमान ही ठीक रहता है.
मशरुम की खेती मे ध्यान रखने योग्य बाते :-
- ड्रम 100 लीटर पानी भर कर रसायन को मिलाना
और पैरा कुटी अच्छे मिला कर न्यूनत्म 16 घंटे तक के लिए ढ़क देना चाहिए। - 16 – 20 घंटे बाद भुसा को साफ चटाई में छाव में सुखाना चाहिए। नमी 30 प्रतिशत होने तक सुखाना चाहिए इसके लिए भुसा को मुठ्ठी में दबा कर देखा जाता हैं यदि पानी ना टपके और हाथ गीला हो तो नमी 30 प्रतिशत है।
- इसके बाद बैग में तीन विधियों से भरा जाता है।
1. सम्पूर्ण मिश्रण
2. समूह मिश्रण
3. परतदार विधि - बैग में बीच ओर भुसा भरने के बाद उसमे कुछ छेद कर दिया जाता है। और शिका बना कर लटका दिया जाता है।
- जब माईशिलियम पुरा फेल जाता हैं तब सभी तरफ सफेद परत जमा हो जाता है। तब पालीथिन को फाड दिया जाना चाहिए।
- पालीथिन फाडने के बाद रोज सिचाई की आवश्कता होती कम से कम रोज 2 बार।
- मशरूम की तुडाई हमेशा गांठ को पकड़ कर घड़ी की उल्टी दिशा में घुमा कर तोडना चाहिए।
मशरुम उत्पादन एक लाभकारी स्वरोजगार है जिसमे काम लगत पर अधिक मुनाफा कमाया जा सकत है।
एक फसल चक्र 40 से 50 दिन का होता है जिमे 1 किलो मशरुम उत्पादन में 20 से 30 रूपये लागत आता है तथा इसे मार्किट में 150 से 200 रूपये किलो तक बेचा जा सकता है।
सरकार द्वारा मदद (Government subsidies for mushroom cultivation)
राज्य सरकारों के द्वारा समय-समय पर मशरूम उगाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इतना ही नहीं मशरूम की खेती के लिए सरकार द्वारा ऋण देने की योजनाएं भी बनाई गयी है. https://www.nabard.org वेबसाइट के जरिये आप इस योजना का बारे में और जानकारी ले सकते हैं. आपको एक व्यावसायिक प्रस्ताव बनाकर सरकारी कार्यालय में जाना होगा. आपको पैन कार्ड आधार कार्ड, निवासी प्रमाण पत्र और बैंक खाता की जानकारी वहां देनी पड़ेगी. ऐसा करने से आपको सरकार द्वारा सब्सिडी दी जाएगी. अगर आप छोटे किसान हैं तो हर एक मशरूम फल के थैले पर 40 प्रतिशत तक एवं सामान्य व्यक्ति के लिए 20 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जाएगी. इस व्यापार में अगर आपको सब्सिडी नहीं चाहिए तो आपको इसका रजिस्ट्रेशन या पंजीकरण करवाने की जरुरत नहीं है.
छोटे किसानों को इस व्यापार में सब्सिडी देकर उनका मदद की जा रही है. सब्सिडी के अलावा सरकार द्वारा मुफ्त प्रशिक्षण की सुविधा भी दी जा रही है. जिसके लिए सरकार ने कई प्रशिक्षण केंद्र खोल रखे है. जहां आपको मशरूम उगाने की सभी तकनीकों के बारे में सिखाया जायेगा.