आलू फसल सब्जी के रूप में उगाई जाने वाली एक मुख्य फसल है। अन्य फसलों जैसे- गेहंू, धान एवं मक्का फसलों की तुलना में आलू में अधिक शुष्क पदार्थ खाद्य प्रोटीन एवं मिनरल (खनिज) पाये जाते हैं यह फसल अल्पावधि वाली होने के कारण मिश्रित खेती के लिए लाभदायक है। अत: इसकी व्यापारिक खेती की जाती है।

आलू की नई विकसित किस्में एवं उनकी विशेषताएं विश्व में आलू को प्रमुख खाद्य फसल के रूप में जाना जाता है, इसका वैश्विक स्तर पर 365 मिलियन टन का उत्पादन होता है | वर्तमान में आलू का उत्पादन विश्व के 150 देशों में होता है, इसमें चीन, भारत और रूस आलू उत्पादन करने वाले देशों में शीर्ष पर है | यह तीन देश दुनिया में कुल उत्पादन का 43 फीसदी योगदान देते हैं | भारत में आलू की खेती 20.64 लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है तथा इसका उत्पादन एवं उत्पादकता क्रमश: 456 लाख टन एवं 22.09 टन प्रति हैक्टेयर है | किसानों को आलू की खेती में कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए उच्च उत्पादकता वाली किस्मों का चयन करना चाहिए जो की मिट्टी एवं क्षेत्र की जलवायु के अनुकूल हो |

 

दोमट या बलुई दोमट पी.एच. 6.5 से 7.5

तापमान – 10 से 20 डिग्री

 

कुफरी चिपसोना 3 , कुफरी चिपसोना 1 , कुफरी बहार, कुफरी पुखराज

आलू की जल्दी तैयार होने वाली किस्में / आलू की उन्नत खेती

कुफरी अशोक, कुफरी पुखराज और कुफरी सूर्या आलू की उन्नत किस्में हैं और ये बहुत जल्दी तैयार हो जाते हैं।

सामान्यत: अगेती फसल की बुआई मध्य सितंबर से अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक, मुख्य फसल की बुआई मध्य अक्टूबर के बाद हो जानी चाहिए।

खरीफ मक्का एवं अगात धान से खाली किए गए खेत में इसकी खेती की जा सकती है। इसकी खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली भूमि उपयुक्त रहती है। इसकी बुवाई से पहले खेत को अच्छी तरह से जुताई करनी चाहिए। इसके लिए ट्रैक्टर चालित मिट्टी पलटने वाले डिस्क प्लाउ या एम.बी. प्लाउ से एक जुताई करने के बाद डिस्क हैरो 12 तबा से दो चास (एक बार) करने के बाद कल्टी वेटर यानि नौफारा से दो चास (एक बार) करनी चाहिए। इसके बाद खेत आलू की रोपनी योग्य तैयार हो जाता है।

 

सिंचाई (Irrigation)

सिंचाई की संख्या मृदा के प्रकार पर निर्भर करती है यदि बुआई के पहले सिंचाई नहीं गयी है तो बुआई के तुरंत बाद पानी देना आवश्यक है।

आलू की फसल में खाद व उर्वरक का प्रयोग अधिक होने से इसे काफी पानी की आवश्यकता होती है। इसलिए इसकी रोपनी के 10 दिन बाद परन्तु 20 दिन के अंदर ही प्रथम सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। ऐसा करने से अकुरण शीघ्र होगा तथा प्रति पौधा कंद की संख्या बढ़ जाती है जिसके कारण उपज में दोगुनी वृद्धि हो जाती है। इसकी दो सिंचाई के बीच 20 दिन से ज्यादा अंतर नहीं रखना चाहिए। वहीं खुदाई के 10 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देनी चाहिए। ऐसा करने से खुदाई के समय कंद स्वच्छ निकलेंगे।

16 कुन्तल / 32 हजार प्रति एकड़

आलू का बीज दर इसके कंद के वजन, दो पंक्तियों के बीच की दूरी तथा प्रत्येक पंक्ति में दो पौधों के बीच की दूरी पर निर्भर करता है। प्रति कंद 10 ग्राम से 30 ग्राम तक वजन वाले आलू की रोपनी करने पर लगभग प्रति एकड़  16 क्विंटल तक आलू के कंद की आवश्यकता होती है। आलू की बुवाई से पहले इसे उपचारित करना बेहद जरूरी है। इसके लिए आलू की बुवाई करने से पहले बीज को कोल्ड स्टोरेज से निकाल कर 10-15 दिन तक छायादार जगह में रखें। सड़े और अंकुरित नहीं हुए कंदों को अलग कर लें। खेत में उर्वरकों के इस्तेमाल के बाद ऊपरी सतह को खोद कर उस में बीज डालें और उस के ऊपर भुरभुरी मिट्टी डाल दें। लाइनों की दूरी 50-60 सेंटीमीटर होनी चाहिए, जबकि खेतों से खेतों की दूरी 15 से 20 सेंटीमीटर होनी चाहिए।

गोबर की खाद-*150 कुन्टल प्रति एकड़

उर्वरक : उर्वरक की मात्रा मृदा की उर्वरकता पर निर्भर करती है। इस क्षेत्र की मृदा नत्रजन उर्वरक के लिए अधिक प्रति किया है। आलू की फसल के लिए उर्वरक 100,100,100 एनपीके. कि./हे. एवं 20 टन/हे. अच्छी तरह से सड़ी गोबर खाद (एफवायएम) आलू लगाने के पहले खेत में डालें।

बुआई के 25-30 दिन बाद मिट्टी चढ़ाते समय 20 किग्रा नत्रजन/हे. टॉप ड्रेसिंग के रूप में दें। सूक्ष्म पोषक तत्वों का छिड़काव करने से आलू की उपज 15-18त्न तक वृद्धि होती है।

खरपतवार नियंत्रण : आलू के 5 प्रतिशत अंकुरण होने पर पैराक्वाट (प्रेमेजोन) 2.5 लीटर पानी हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें एवं जब फसल 30 दिन की अवस्था की हो तब 20 किग्रा नत्रजन प्रति हेक्टेयर की दर से डालकर मिट्टी चढ़ाने का कार्य करें तत्पश्चात सिंचाई करें।

पौध संरक्षण : आलू फसल बोते समय थिमेट 10 जी दानेदार दवा 15 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में मिलायेें। जिससे फसल को भूमिगत कीटों एवं रस सूसक कीटों से 30-35 दिनों तक बचाया जा सकता है। खड़ी फसल अवस्था में अगेती, पिछेती, अंगमारी एवं रस चूसक की रोकथाम हेतु डायथेन एम 45 दवा 2.5 ग्राम एवं मेटासिस्टॉक्स या रोगोर दवा 1.25 मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर 10-15 दिनों के अतराल में छिड़काव करें।

अगेती झुलसा एवं पिछेती खुलसा : जैसा की इसके नाम से जाहिर है कि अगेती झुलसा खेत में पहले आती है, जबकि पिछेती झुलसा प्राय: जनवरी-फरवरी में आती है। ये दोनों बीमारी दो अलग अलग फफूंद से उत्पन्न होती है। वैसे तो दोनों ही बीमारियों मे क्षति होती है, परंतु पछेती झुलसा से काफी नुकसान होता है। वर्ष 1985 में यह रोग व्यापक स्तर पर पूरे उत्तर भारत में आलू की पैदावार पर गहरा असर पड़ा था। 

लक्षण– झुलसा रोग शुरू में साफ नजर आते हैं, और उनको अलग अलग पहचाना जा सकता है। अगेती झुलसा की बीमारी में पत्तियों पर एक केन्द्रीकीये करीब करीब गोलाकार धब्बे बनते हैं जो बाद में एक-दूसरे से मिल जाते हैं और बड़े धब्बे में परिवर्तित हो जाते हैं। और इस प्रकार पूरा पत्ती झुलस जाता है। वैसे यह बीमारी सामान्य तापक्रम पर आती है जबकि पिछेती झुलसा थोड़ी देर से आती है और कम तापक्रम पर बहुत जल्दी फैलती है। पिछेती झुलसा में पत्तियाँ किनारे से या शिखर से झुलसना प्रारम्भ कर देती हैं और धीरे-धीरे पूरी पत्ती ही प्रभावित हो जाती है। पत्तियों के निचले हिस्से में सफ़ेद रंग की फफूंदी दिखाई देने लगती है और इस तरह रोग फैलने से पूरा पत्ती शीघ्र ही काला पड़ के झुलस जाता है, और कन्द नहीं बनते अगर बनते भी हंै तो बहुत छोटे बनते है। साथ ही साथ इनकी भंडारण क्षमता भी घाट जाती है।

बीमारी के बढऩे में वातावरण का विशेष प्रभाव होता है अत: पिछेती झुलसा ऐसे वातावरण में महामारी का रूप ले लेती है यदि आसमान में 3-5 दिन तक बादल छाए रहे, धूप न निकले या हल्की हल्की बूँदा-बांदी हो जाए। कड़ाके की सर्दी भी पड़ती हो तो यह निश्चित तौर पर जान लेना चाहिए की यह बीमारी महामारी का रूप लेने वाली है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए आलू की फसल की विशेष देखभाल बहुत जरूरी होती है किसान अपनी फसल को इस महामारी से तभी बचा सकता है जब वो बुवाई से पहले और बाद में कुछ विशेष बातों पर ध्यान देगा।

निदान:

  • यह बीमारी शीतगृहों में संचित आलू से जो पिछली साल बीमारी ग्रसित खेत से लिया गया हो, से किसान के खेत में पहुँचती है। अधिकतर किसान अब अपने खेत का ही आलू बीज के लिए सुरक्षित भंडारित करते हैं। इस दशा में किसान को चाहिए की वह स्वस्थ एवं सही बीज का चुनाव करें। आलू के कटे टुकड़े को या सम्पूर्ण आलू को रसायन अथवा जैविक (सीमेसान, एगलाल (लाल दावा), एरेटान व सेरेसान) से उपचार करें। इसके लिए किसी एक दवा का 0.25 प्रतिशत घोल बनाकर बीज को उपचारित करना चाहिए जिससे इस बीमारी की संभावना कम हो जाती है। साथ ही यह अन्य बीमारियों के लिए लाभदायक होता है।
  • सामान्यतया: आलू की मेढ़ को 9 इंच ऊंची बनाना चाहिए। इसके दो लाभ होते हैं एक तो आलू अच्छे बढ़ते हैं और साथ ही साथ रोग के फैलने की संभावना भी कम हो जाती है।
  • जब भी मौसम में कुछ बदलाव की संभावना हो, जैसे बादल का दिखाई देना और तापक्रम का कम होना, तो ऐसी अवस्था में डाइथेन एम-45 या डाइथेन जेड-78 या डाइफल्टान नमक दवा की 2.5 किलोग्राम मात्रा 1000 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टर में छिड़काव करें। ध्यान रहे की दवा पत्तियों के निचली सतह पर भी पड़ जाय। इसके लिए स्प्रेयर के नाजल को उल्टा करके दवा छिड़कने पर निचली सतह पर भी दवा पहुँच जाती है। 7-10 दिन के अंतराल पर 3-4 छिड़काव करने से बीमारी पर नियंत्रण किया जा सकता है।
  • झुलसा से प्रभावित खेतों में आलू की खुदाई पत्तियों के सूखने पर ही करें। उत्तम तो यह होता है कि खुदाई के पहले डाइथेन एम-45 या कापर सल्फेट का छिड़काव करें, इससे बीज काफी हद तक बीमारी के दुष्प्रभाव से बच सकता है।
  • प्रतिरोधी जातियों का चयन करें जैसे-कुफऱी किसान, कुफऱी कुन्दन, कुफऱी सिंदूरी, कुफऱी बादशाह, कुफऱी ज्योति आदि जातियां झुलसा रोग के लिए प्रतिरोधी पाई जाती है।

 

मिट्टी चढ़ाना

रोपनी के 30 दिन बाद दो पंक्तियों के बीच में यूरिया का शेष आधी मात्रा यानि 165 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से डालकर कुदाली से मिट्टी बनाकर प्रत्येक पंक्ति में मिट्टी चढ़ा देना चाहिए। फिर कुदाली से हल्का थप-थपाकर दबा देना चाहिए ताकि मिट्टी में पकड़ बनी रहे।

खरपतवार नियंत्रण : आलू के 5 प्रतिशत अंकुरण होने पर पैराक्वाट (प्रेमेजोन) 2.5 लीटर पानी हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें एवं जब फसल 30 दिन की अवस्था की हो तब 20 किग्रा नत्रजन प्रति हेक्टेयर की दर से डालकर मिट्टी चढ़ाने का कार्य करें तत्पश्चात सिंचाई करें।

पौध संरक्षण : आलू फसल बोते समय थिमेट 10 जी दानेदार दवा 15 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में मिलायेें। जिससे फसल को भूमिगत कीटों एवं रस सूसक कीटों से 30-35 दिनों तक बचाया जा सकता है। खड़ी फसल अवस्था में अगेती, पिछेती, अंगमारी एवं रस चूसक की रोकथाम हेतु डायथेन एम 45 दवा 2.5 ग्राम एवं मेटासिस्टॉक्स या रोगोर दवा 1.25 मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर 10-15 दिनों के अतराल में छिड़काव करें।

ध्यान रहे यदि प्रथम सिंचाई रोपनी के 10 दिन बाद तथा 20 दिन के अंदर न हुआ तो उपज आधी रह जाती है।

 

बाजार भाव एवं आवश्यकता को देखते हुए रोपनी के 60 दिन बाद आलू का खुदाई की जाती है। यदि भंडारण के लिए आलू रखना हो तो कंद की परिपक्वता की जांच के बाद ही खुदाई करनी चाहिए। खुदाई दिन के 12.00 बजे तक पूरा कर लेनी चाहिए। खुदे कंद को खुले धूप में नहीं रखकर छायादार जगह में रखा जाता है। धूप में रखने पर भंडारण क्षमता घट जाती है।

260 कुन्तल प्रति एकड़

 

  • कुल उत्पादन – 1 लाख 30 हजार
  • 50 हजार प्रति एकड़

शुद्ध लाभ  – 80 हजार प्रति एकड़

स्ट्रॉबेरी की खेती में रिस्क

किसी भी व्यापार में रिस्क तो जरुर होता है, लेकिन अगर मैं बात करूं स्ट्रॉबेरी की खेती में कितना रिस्क है तो यह आपके उपर निर्भर करता है की आप यह खेती किस तरह से करेंगे. अगर आपको कम रिस्क में यह खेती करनी है तो आप सरकार की मदद ले सकते हैं. क्योंकि अनेक तरह के बीमा इत्यादि कृषि विभाग आपको देंगे. वही अगर आपको इससे प्रॉफिट होगा तो आप मात्र 3 से 5 लाख रूपए लगाकर 12 से 15 लाख रूपए कमा सकते हैं.

अगर आप खेती को अपना बिजनेस बनाना चाहते हैं तो आपको स्ट्रॉबेरी की खेती जरुर करनी चाहिए. हमने यह खेती कैसे होती है इसकी जानकारी आपको यहाँ इस आर्टिकल में दी है. अगर आपको इस खेती से जुड़ी कोई और जानकारी चाहिए तो आप यहाँ कमेंट कर सकते हैं. हम जल्द ही आपके सवालों का जवाब देंगे.

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