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लेमनग्रास (Lemon Grass) की खेती की सबसे खास बात ये है कि इसे सूखाग्रस्त इलाकों में भी लगाया जा सकता है। लेमनग्रास लगाने में लागत भी ज्यादा नहीं है। साथ ही भारत सरकार एरोमा मिशन के तहत इसकी खेती को बढ़ावा दे रही है।
लेमन ग्रास की खेती बेहद आसान है। इसके लिए किसी खास तरह की जमीन की जरूरत नहीं होती है। यहां तक कि जंगलों और जमीन में भी इसकी खेती की जा सकती है। यह किसी भी मिट्टी पर हो सकती है। बस जलजमाव वाली जगह नहीं चाहिए। बरसात के सीजन में इसकी प्लाटिंग करना सबसे अच्छा माना जाता है। हालांकि आप साल भर इसकी प्लांटिंग कर सकते हैं। पहली बार खेती करने पर फसल तैयार होने में 60 से 65 दिन का वक्त लगता है। जबकि दूसरी बार में सिर्फ 40 से 45 दिन लगता है। एक बार प्लांटिंग करने के बाद चार से पांच साल तक फसल का लाभ लिया जा सकता है। इसके लिए महीने में एक बार सिंचाई की जरूरत होती है।
इसके लिए किसी तरह की खाद की भी कोई खास जरूरत नहीं होती है। एक बार फसल लगने के बाद चार से पांच साल तक इसका लाभ लिया जा सकता है। खास बात यह है कि इसकी देखभाल की जरूरत न के बराबर होती है। जंगली पशु या गाय-भैंस इसे नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
लेमन ग्रास की डिमांड क्यों है?
- लेमन ग्रास कॉमर्शियल प्लांट के साथ ही मेडिसिनल प्लांट भी है। इसकी पत्तियों और इसके ऑयल का इस्तेमाल दवाइयों के निर्माण में किया जाता है। यह एंटीऑक्सीडेंट, एंटी इन्फ्लेमेटरी और एंटीसेप्टिक होता है। यह सिर दर्द, अनिद्रा और डिप्रेशन को कम करता है। यह इम्यूनिटी बूस्टर का भी काम करता है। इसलिए मेडिकल फील्ड में इसकी खूब डिमांड है।
- इसके ऑयल से साबुन, शैम्पू, क्रीम और कई तरह के ब्यूटी प्रोडक्ट बनाए जाते हैं। कई बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियां किसानों से सीधे फसल या ऑयल खरीद लेती हैं।
- आजकल लेमन ग्रास की पत्तियों से चाय भी बनाई जा रही है। कोरोना के बाद इसकी मांग बढ़ गई है।
- चूंकि यह खट्टा होता है इसलिए नींबू की जगह खाना बनाने में भी इसका इस्तेमाल किया जा रहा है।
एक नजर मे
कुल बीज | पौधे की संख्या | उपज | खर्च | बिक्री दर/प्रति लिटर | आय | शुद्ध लाभ |
2.5kg | 15000 तक | 500 लिटर तेल | ₹ 1,20,000/- | ₹ 1000/- | ₹ 5,000, 00 | ₹ 3,80,000 |
1. नर्सरी समय : अप्रैल – मई -जून
2. रोपण समय : जून -जुलाई -अगस्त
3. उत्पादन समय : लेमन ग्रास चार महीनों में तैयार हो जाता है.
एक एकड़ जमीन पर लेमन ग्रास की खेती से 5 टन तक उसकी पत्तियां निकाली जा सकती हैं। एक क्विंटल लेमन ग्रास से एक लीटर ऑयल निकलता है। इसकी कीमत बाजार में ₹ 1000 से लेकर ₹ 1500 रुपए तक होती है। यानी पांच टन लेमन ग्रास से कम से कम ₹ 5 लाख रुपए की आमदनी की जा सकती है।
हर तरह की मिट्टी और जलवायु में पैदा होनी वाली इस फसल में गोबर की खाद और लकड़ी की राख सबसे ज्यादा फायदा करती है।
लेमनग्रास की खेती के लिए आवश्यक जलवायु लेमनग्रास को ऐसे स्थान पर उगाया जा सकता है जहां धूप से भरपूर गर्म और आर्द्र जलवायु हो और पूरे वर्ष में अच्छी तरह से वितरित 200-250 सेमी से कम वर्षा हो।
ओडी-19 (सुगंधी): एएमपीआरएस, ओडक्कली, केएयू, केरल द्वारा जारी। इस किस्म के पौधे की ऊंचाई 1-1.75 मीटर होती है। उनके पास 0.3-0.4% तेल सामग्री, तेल उपज @ 40-50 किग्रा / एकड़ और साइट्रल सामग्री यानी 84-86% है। वे जलवायु और मिट्टी की विस्तृत श्रृंखला में विकसित हो सकते हैं।
प्रगति: सीआईएमएपी, लखनऊ, यू.पी. द्वारा जारी। इस किस्म का पौधा बौना होता है जिसकी पत्तियां चौड़ी और गहरे हरे रंग की होती हैं। वे उच्च तेल यानी 0.63% और साइट्रल सामग्री 85-90% उत्पन्न करते हैं। यह मुख्य रूप से उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय जलवायु या उत्तरी मैदानों में उगाया जाता है।
नीमा: सीआईएमएपी, लखनऊ, यू.पी. द्वारा जारी। इस किस्म का पौधा लंबा और सिट्रल किस्म का होता है। यह उच्च बायोमास @ 9-11 मीट्रिक टन/एकड़ पैदा करता है और उच्च तेल उपज 95-105 किलोग्राम/एकड़ है। यह भारतीय मैदान में उगाया जाता है कावेरी: सीमैप, लखनऊ, उत्तर प्रदेश द्वारा जारी पौधे का तना सफेद होता है और यह लंबा होता है। वे नम परिस्थितियों में या भारतीय मैदानों के नदी घाटी इलाकों के पास उगते हैं।
कृष्णा: सीआईएमएपी सब सेंटर, बैंगलोर द्वारा जारी किया गया। पौधा मध्यम ऊंचाई तक पहुंचता है। उनके पास उच्च बायोमास उपज यानी 8-11 मीट्रिक टन/एकड़ है और उच्च तेल उपज यानी 90-100 किलोग्राम/एकड़ है। यह भारतीय मैदानों में उगाया जाता है।
एनएलजी 84: एम एंड एपी, एनडीयूएटी, फैजाबाद, उत्तर प्रदेश पर एआईएनआरपी द्वारा 1994 में जारी की गई किस्म। यह किस्म ऊंचाई में लंबी होती है यानी 100-110 सेंटीमीटर गहरे बैंगनी रंग की म्यान वाली पत्तियां होती हैं। तेल सामग्री 0.4% और साइट्रल सामग्री 84% है। यह उत्तर प्रदेश में उगाया जाता है।
ओडी 410: यह एएमपीआरएस, ओडक्कली, केएयू, केरल द्वारा जारी किया गया है। यह १०५० किग्रा/एकड़/वर्ष की दर से ओलियोरेसिन उत्पन्न करता है और इसमें १८.६% ओलेरोसिन की मात्रा होती है। यह मेथनॉल के निष्कर्षण के लिए एक आदर्श विलायक है।
बुवाई/लगाने का समय (जून – जुलाई)
नर्सरी लगाने के दो माह के बाद पौधे मुख्य खेत में रोपाई के लिए तैयार हो जाती है।
नर्सरी तैयार करने का उचित समय अप्रैल- मई माह में करें और नर्सरी बेबनाने की शरुआत मार्च-अप्रैल से ही करे ।
अंतर वृद्धि की आदत के आधार पर रोपाई के लिए 60 सेमी x 60 सेमी और पर्चियों के लिए 90 सेमी x 60 सेमी की दूरी की आवश्यकता होती है।
बुवाई की गहराई
गहराई 2-3 सेमी होनी चाहिए।
सभी पौधों की तरह लेमनग्रास के पौधों को लगाने की भी एक विधि होती हैं। पौधों में पत्तियां ज्यादा से ज्यादा हो इसके लिए इसको एक-एक फीट के दूरी पर लगाया जाता है।
लेमनग्रास की खेती के लिए उपजाऊ और सिंचित भूमि की आवश्यकता होती है। बार-बार जुताई व जुताई करनी चाहिए। फसल को दीमक के हमले से बचाने के लिए भूमि की तैयारी के दौरान लिंडेन पाउडर @ 10 किग्रा / एकड़ मिट्टी में अंतिम जुताई के समय मिलाएं। लेमनग्रास का प्रत्यारोपण उठी हुई क्यारियों पर किया जाता है।
बीज उपचार फसल को लंबे स्मट रोग से बचाने के लिए बिजाई से पहले बीज को सेरेसन 0.2% या एमिसन 1 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद बुवाई के लिए बीज का प्रयोग करें।
ज्यादा सूखे इलाकों में पूरे साल में 8-10 सिंचाई की जरुरत होगी।
उर्वरक की आवश्यकता (किलो/एकड़)
UREA | SSP | MURIATE OF POTASH |
52 | 125 | 23 |
पोषक तत्वों की आवश्यकता (किलो/एकड़)
NITROGEN | PHOSPHORUS | POTASH |
24 | 20 | 14 |
उत्तर पूर्व क्षेत्र में नाइट्रोजन 24 किलो, फास्फोरस 20 किलो और पोटेशियम 14 किलो प्रति एकड़ यूरिया 52 किलो, एसएसपी 125 किलो और एमओपी 23 किलो प्रति एकड़ डालें। अन्य स्थितियों में नाइट्रोजन 40 किग्रा/एकड़ की दर से डालें जैसा कि एरोमैटिक प्लांट रिसर्च स्टेशन, ओडक्कली (केरल) द्वारा अनुशंसित है।
लेमनग्रास को ज्यादा निराई गुड़ाई की जरुरत नहीं होती, साल में दो से तीन निराई गुड़ाई पर्याप्त हैं।
रोग और उनका नियंत्रण:
लंबी स्मट: फूल क्रीम रंग की सोरी में बदलने लगते हैं। यह रोग फूल को सिरे से संक्रमित करना शुरू कर देता है और फिर धीरे-धीरे पूरे फूल तक पहुंच जाता है। लंबे स्मट से छुटकारा पाने के लिए फूल आने से पहले डाइथेन जेड-78 @ 2% का स्प्रे करें या बुवाई से पहले बीज को सेरसन @ 0.2% या एमिसन -6 @ 1 ग्राम / किग्रा से उपचारित करें।
कीट और उनका नियंत्रण:
स्टेम बोरिंग कैटरपिलर:
कैटरपिलर तने के तल में छेद करता है और पौधे पर अपना भोजन करता है। बीच के पत्ते का सूखना पहला लक्षण है। कीटों को ठीक करने के लिए फोलिडोल ई 605 का छिड़काव किया जाता है।
नेमाटोड:
वे पूरी घास को संक्रमित करते हैं। फसल को कीड़ों से बचाने के लिए फेनामीफॉस @4.5 किग्रा/एकड़ का प्रयोग करें।
रोपाई के 4-6 महीने बाद पौधे उपज देने लगते हैं। कटाई 60-70 दिनों के अंतराल पर की जाती है। कटाई के लिए दरांती का उपयोग किया जाता है। कटाई मई में शुरू होती है और जनवरी महीने में समाप्त होती है। दरांती की सहायता से कटाई के लिए घास को जमीनी स्तर से 10-15 सेंटीमीटर ऊपर काटा जाता है।
फसल कटाई के बाद कटाई के बाद आसवन किया जाता है। आसवन से पहले लेमनग्रास को 24 घंटे के लिए सोडियम क्लोराइड के घोल में डुबोया जाता है क्योंकि इससे फसल में साइट्रल की मात्रा बढ़ जाती है। फिर घास को छायादार स्थान पर संग्रहित किया जाता है और स्थानीय बाजारों में परिवहन के लिए बैग या पैकेट में पैक किया जाता है। परिपक्व लेमनग्रास से लेमन ग्रास ऑयल और लेमन ग्रास लोशन जैसे कई उत्पाद प्रसंस्करण के बाद बनाए जाते हैं।
एक एकड़ जमीन पर लेमन ग्रास की खेती से 5 टन तक उसकी पत्तियां निकाली जा सकती हैं।
एक क्विंटल लेमन ग्रास से एक लीटर ऑयल निकलता है। इसकी कीमत बाजार में 1 हजार से लेकर 1500 रुपए तक होती है। यानी पांच टन लेमन ग्रास से कम से कम 5 लाख रुपए की मार्केटिंग की जा सकती है।
खेती की लागत लेमनग्रास की खेती की लागत दो चरणों में होती है-
1. रोपण लागत :-
यह अनावर्ती है, जिसका औसत ₹ 30,000/-.
2. रख रखाव लागत और फसल चरण लागत : –
रखरखाव लागत और फसल चरण लागत आवर्ती होती है जो ₹ 90,000/- प्रति एकड़ आती है।
इस प्रकार लेमनग्रास की खेती की कुल लागत ₹ 1,20,000/- प्रति एकड़ .
एक एकड़ जमीन पर लेमन ग्रास की खेती से 5 टन तक उसकी पत्तियां निकाली जा सकती हैं।
एक क्विंटल लेमन ग्रास से एक लीटर ऑयल निकलता है। इसकी कीमत बाजार में ₹ 1000 से लेकर ₹ 1500 रुपए तक होती है। यानी पांच टन लेमन ग्रास से कम से कम ₹ 5 लाख रुपए की आमदनी की जा सकती है।
उपज | खर्च | बिक्री दर/प्रति लिटर | आय | शुद्ध लाभ |
500 लिटर तेल | ₹ 1,20,000/- | ₹ 1000/- | ₹ 5,000, 00 | ₹ 3,80,000 |
लेमन ग्रास फार्मिंग की ट्रेनिंग देश के कई राज्यों में दी जाती है। एक दिन से लेकर एक हफ्ते तक का कोर्स होता है। आप अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से इसकी जानकारी ले सकते हैं। सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एरोमेटिक प्लांट, लखनऊ (CIMAP), पालमपुर, हिमाचल स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी (IHBT) से इसकी ट्रेनिंग ली जा सकती है। इसके साथ ही कई किसान भी इसकी ट्रेनिंग देते हैं।
लेमनग्रास की खेती के लिए यहां कर सकते हैं संपर्क : केंद्रीय औषध एवं सगंध पौध संस्थान (सीमैप) फोन नंबर : 0522-2718629, ईमेल: s.singh@cimap.res.inलेमनग्रास की खेती कर रहे किसान बताते हैं कि इस पर आपदा का प्रभाव नहीं पड़ता और पशु नहीं खाते तो यह रिस्क फ्री फसल है. वहीं लेमनग्रास की रोपाई के बाद सिर्फ एक बार निराई करने की जरूरत पड़ती है और सिंचाई भी साल में 4-5 बार ही करनी पड़ती है. इससे जाहिर होता है कि इसमें मेहनत कम लगता है और लागत भी काफी कम है. इन्हीं वजहों से किसान इसकी खेती की तरफ आकर्षित हो रहे हैं और ज्यादा से ज्यादा कमाई कर रहे हैं