अमरूद की खेती भारत के लगभग हर राज्य में अमरूद उगाया जाता है, परन्तु मुख्य राज्य बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, गुजरात और आन्ध्रप्रदेश हैं | उत्तर प्रदेश में अमरूद की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है । अमरूद पोषक तत्वों का भंडार है । इसलिए इसे ग़रीबों का सेब (apple of poor) भी कहा जाता है । कुछ किसान देशी अमरूद की खेती छोड़ उन्नत क़िस्मों को अपनाकर अच्छा मुनाफ़ा कमा रहे हैं । वैज्ञानिक विधि से अमरूद की उन्नत खेती करके आप एक सीजन में लाखों रुपए का मुनाफ़ा कमा सकते हैं । अमरूद की खेती को अमीर होने की ट्रिक भी कह सकते हैं ।

पोषक तत्वों का भंडार है अमरूद – ग़रीबों का सेब कहलाता है अमरूद

अमरूद खाने में मीठा व खट्टापन लिए होता है । बच्चे बूढ़े सभी बड़े चाव से खाते हैं । अमरूद में शरीर के वृद्धि व विकास के लिए अभी ज़रूरी पोषक तत्व व खनिज लवण पाए जाते हैं । अमरूद में प्रोटीन, कार्बोहाईड्रेट, शुगर, फ़ाइबर, वसा, विटामिन A, विटामिन B1,B2,B3, B5,B6,B9, विटामिन C, v विटामिन K, तथा माईक़्रो न्यूट्रीशन केल्सियम, मैग्निशियम,मैगनीज,व सोडियम, पोटेशियम आदि पाए जाते हैं । अमरूद खाने वाले स्वस्थ रहते हैं ।

वी एन आर अमरूद शुगर फ्री अमरुद की किस्म अच्छी होने से इसे भाव अच्छा मिलता है।

भारत में अमरूद की खेती जम्मू से लेकर तामिलनाडु ,पूर्वोत्तर राज्यों से लेकर गुजरात में सफलतापूर्वक की जाती है। अमरुद को सभी तरह की मिट्टी / मृदाओ में उगाया जा सकता है , जिसका पीएच 4.5 से 9.4 के आस-पास हो, पर कम एवं अधिक पीएच की मृदाओ में विशिष्ट प्रबंधन की आवश्यकता होती है। इसकी खेती कटिबंधीय एवं उष्णकटिबंधीय जलवायु में , सूखी एवं नमी युक्त स्थितियों में सफलतापूर्वक की जा सकती है परंतु कोहरे एवं पाले की स्थिति इसके लिए विषम है , भारत में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार आदि राज्यों में इसकी खेती बड़ी पैमाने पर की जाती है|

अच्छी पैदावार के लिए इसे गहरे तल, अच्छे निकास वाली रेतली चिकनी मिट्टी/बलुई दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त है। 

वीएनआर वीही प्रजाति के अमरूद के लिए जलवायु ज्यादा गर्म या ठंडी नहीं होनी चाहिए। जिसमें पांच से 30 डिग्री सेल्सियस का तापमान बेहतर होता है। ऊष्ण और उपोष्ण जलवायु में इसे उगाया जा सकता है।

Punjab Pink: इस किस्म के फल दरमियाने से बड़े आकार और आकर्षक रंग के होते हैं। गर्मियों में इनका रंग सुनहरी पीला हो जाता है। इसका गुद्दा लाल रंग का होता है जिसमें से अच्छी खुशबू आती है। इसमें टी एस एस की मात्रा 10.5 से 12 प्रतिशत होती है। इसके एक बूटे की पैदावार तकरीबन 155 किलो तक होता है।
 
Allahbad Safeda: यह दरमियाने कद की किस्म है। जिसका बूटा गोलाकार होता है। इसकी टहनियां फैली हुई होती हैं। इसका फल नर्म और गोल आकार का होता है। इसके गुद्दे का रंग सफेद होता है जिस में से आकर्षित खुशबू आती है। इसमें टी एस एस की मात्रा 10 से 12 प्रतिशत होती है।
 
 
Arka Amulya:  इसका बूटा छोटा और गोल आकार का होता है। इसके पत्ते काफी घने होते हैं। इसके फल बड़े आकार के, नर्म, गोल और सफेद गुद्दे वाले होते हैं। इसमें टी एस एस की मात्रा 9.3 से 10.1 प्रतिशत तक होती है। इसके एक बूटे से 144 किलोग्राम तक फल प्राप्त हो जाता है।
 
Sardar: इसे एल 49 के नाम से भी जाना जाता है। यह छोटे कद वाली किस्म है, जिसकी टहनियां काफी घनी और फैली हुई होती हैं। इसका फल बड़े आकार और बाहर से खुरदुरा जैसा होता है। इसका गुद्दा क्रीम रंग का होता है। खाने को यह नर्म, रसीला और स्वादिष्ट होता है। इसमें टी एस एस की मात्रा 10 से 12 प्रतिशत होती है। इसकी प्रति बूटा पैदावार 130 से 155 किलोग्राम तक होती है।
 
Punjab Safeda: इस किस्म के फल का गुद्दा क्रीमी और सफेद होता है। फल में शूगर की मात्रा 13.4 प्रतिशत होती है और खट्टेपन की मात्रा 0.62 प्रतिशत होती है।
 
Punjab Kiran: इस किस्म के फल का गुद्दा गुलाबी रंग का होता है। फल में शूगर की मात्रा 12.3 प्रतिशत होती है और खट्टेपन की मात्रा 0.44 प्रतिशत होती है। इसके बीज छोटे और नर्म होते हैं।
 
Shweta: इस किस्म के फल का गुद्दा क्रीमी सफेद रंग का होता है। फल में सुक्रॉस की मात्रा 10.5—11.0 प्रतिशत होती है। इसकी औसतन उपज 151 किलो प्रति वृक्ष होती है।
 
Nigiski: इसकी औसतन उपज 80 किलो प्रति वृक्ष होती है।
 
Punjab Soft: इसकी औसतन उपज 85 किलो प्रति वृक्ष होती है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Allahabad Surkha: यह बिना बीजों वाली किस्म है। इसके फल बड़े और अंदर से गुलाबी रंग के होते हैं।
 
Apple guava: इस किस्म के फल दरमियाने आकार के गुलाबी रंग के होते हैं। फल स्वाद में मीठे होते हैं और इन्हें लंबे समय के लिए रखा जा सकता है।
 
Chittidar: यह उत्तर प्रदेश की प्रसिद्ध किस्म है। इसके फल अलाहबाद सुफेदा किस्म जैसे होते हैं। इसके इलावा इस किस्म के फलों के ऊपर लाल रंग के धब्बे होते हैं। इसमें टी एस एस की मात्रा अलाहबाद सुफेदा और एल 49 किस्म से ज्यादा होती है। 
 

वी एन आर बीही अमरूद

वी एन आर बीही प्रजाति के अमरुद का अनुसंधान एवं विकास कृषि पंडित आदरणीय डॉ नारायण चावड़ा चेयरमैन वी एन आर समूह के द्वारा वर्षों के कठिन परिश्रम एवं लगन का परिणाम है| आज वी एन आर बीही अमरूद पूरे देश के किसानों की पहली पसंद है| बड़े आकार ,कम बीज, अधिक उत्पादन, औसत मिठास ,अधिक समय तक गुणवत्ता बनाए रखने की क्षमता एवं बाजार में किसानों को मिलने वाले अधिक मूल्य की वजह से आज भारत के 20 प्रदेशों के 290 से अधिक जिलों में 40 लाख से अधिक पौधे किसानों की आमदनी में दिनों दिन प्रगति कर रहे हैं|

बिजाई का समय
फरवरी-मार्च या अगस्त-सितंबर का महीना अमरूद के पौधे लगाने के लिए सही माना जाता है।
 
फासला
पौधे लगाने के लिए 6×5 मीटर का फासला रखें। यदि पौधे वर्गाकार ढंग से लगाएं हैं तो पौधों का फासला 7 मीटर रखें। 132 पौधे प्रति एकड़ लगाए जाते हैं।
 
बीज की गहराई
जड़ों को 25 सैं.मी. की गहराई पर बोना चाहिए।
 
बिजाई का ढंग
सीधी बिजाई करके
खेत में रोपण करके
कलमें लगाकर
पनीरी लगाकर

खेत की दो बार तिरछी जोताई करें और फिर समतल करें। खेत को इस तरह तैयार करें कि उसमें पानी ना खड़ा रहे।

अमरूद के बाग में सिंचाई व जल निकास प्रबंधन

पानी की कमी के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए । पेड़ों के आस पास 6 इंच ज़मीन खोदकर मिट्टी निकालकर उसके ढ़ेला बनाएँ । अगर ढ़ेला बन जाता है तो इसका मतलब यह हुआ की सिंचाई की ज़रूरत नही है । नए नए रोपण किए गये पौधे में 7 से 10 दिन में व पुराने बाग में 12- 15 दिन में सिंचाई करें ।

वी एन आर बीही अमरूद के लिए टपक सिंचाई अथवा ड्रिप की पाइप का स्थानन

  • ड्रिप / टपक सिंचाई की पाइप पौधों के पास फैलाना

वी एन आर बीही की बागवानी में ड्रिप / टपक सिंचाई का बहुत अधिक महत्व है | जहां एक और हम सभी पौधों को एक साथ समान मात्रा में जल से सिंचित कर सकते हैं , वहीं दूसरी ओर हम समान मात्रा में सभी पौधों को उर्वरक या रासायनिक खाद या जैविक खाद भी दे सकते हैं| टपक सिंचाई विधि में जल पौधे के समीप ही गिरता है जो जड़ो की वृद्धि के लिए आवश्यक है सीमित क्षेत्र में पानी गिरने के कारण खरपतवार  भी अधिकांशतः सीमित क्षेत्र में ही होते हैं| यदि हम पाइप से अथवा जलभराव विधि से खेतों को सींचते हैं तो जल एक बड़े क्षेत्र में फैलता है इससे अधिक मात्रा में जल की आवश्यकता होती है और पूरा खेत खरपतवार से भरा रहता है उर्वरक अथवा खाद भी देना और सुविधाजनक एवं खर्चीला होता है| टपक सिंचाई के बगीचे अधिक स्वस्थ एवं ज्यादा उत्पादकता देने वाले होते हैं इसलिए इस तकनीक का उपयोग फायदेमंद है|

  • ड्रिप लाइन पौधे से कितनी पास अथवा दूर रखें

किसी भी पौधे की जड़ों में खाना खाने बनाने वाली जड़ों को फीडर रुट कहते है यह मिट्टी की ऊपरी सतह से 15 -20 इंच की गहराई में विद्यमान रहती है| नमी की उपलब्धता में इनका विकास कुछ क्षेत्र में या पौधे के चारों तरफ रहता है पौधरोपण के बाद बारिश में एक ड्रिप लाइन पौधे के तने के एक तरफ 4- 6 इंच की दूरी पर रखते हैं परंतु शीत ऋतु के पश्चात एक और ड्रिप लाइन बिछाकर तने के दोनों तरफ रखते हैं | चहुँओर नमी की उपलब्धता में जड़ों का विकास चारों तरफ होता है|

पौधे के विकास के अनुरूप ही जमीन के अंदर जड़ो का विकास भी लगातार होता रहता है जैसे-जैसे पौधे का वानस्पतिक क्षेत्रफल बढ़ता है वैसे वैसे हमें ड्रिप लाइन तने से दूर खिसकाते रहना चाहिये ड्रिप लाइन से जल की उपलब्धता पौधों के चारों तरफ होने के वजह से एक बड़े क्षेत्र में फीडर जड़ो का विकास होता है, जो पौधे की वृद्धि एवं उत्पादकता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है |

पौधरोपण के पश्चात कभी भी ड्रिप लाइन को पौधे के तने के अत्यधिक नजदीक / सटाकर ना रखें अथवा अथवा तने से न बाँधे इससे तने में कॉलर रॉट नामक बीमारी होने की संभावना रहती है|

वी एन आर बीही के बगीचे में दूसरी ड्रिप लाइन कब और क्यों लगाये ?

पौधे के चारों तरफ मिट्टी में नमी उपलब्ध कराने के लिए एवं चारों तरफ जड़ों के विकास के लिए यह आवश्यक है ,ग्रीष्म ऋतु के प्रारंभ में (फरवरी) दूसरी ड्रिप लाइन लगाना फायदेमंद है |

वी एन आर बीही के बगीचे में कितने अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिये ?

जलवायु ,मौसम , पौधे की उम्र / फैलाव के अनुसार सिंचाई निर्धारित करना चाहिये ,बिजली की सरल उपलब्धता हो तो ड्रिप दिन में दो बार चलाकर पल्स सिंचाई फायदेमंद है 20 लीटर / दिन =(10 ली.+ 10 ली.) सिंचाई निर्धारण करने के लिए बेड की मिट्टी थोड़ी सी खोदकर नमी का आकलन आवश्यक है |मिट्टी अगर गेंद बन जाती है और गिराने पर नहीं टूटती तो सिंचाई नहीं करनी चाहिए | यदि टूट जाती है तो नमी कम है और पानी की आवश्यकता है।

 

वी एन आर बीही प्रजाति के अमरुद के पौधे 12 x 8 फीट मे एक एकड़ में तकरीबन 450 से 500 पौधे की जरूरत है ।

एक पेड़ से दूसरे पेड़ के बीच में 12 फुट सामने और आठ फुट की दूरी पर बगल में होनी चाहिए।

अमरूद का प्रवर्धन व रोपण

पौधारोपण विधि amrud ki kheti हेतु पौधा रोपण का मुख्य समय जुलाई से अगस्त तक है| लेकिन जिन स्थानों में सिंचाई की सुविधा हो वहाँ पर पौधे फरवरी से मार्च में भी लगाये जा सकते हैं| बाग लगाने के लिये तैयार किये गये खेत में निश्चित दुरी पर 60 सेंटीमीटर चौड़ाई, 60 सेंटीमीटर लम्बाई, 60 सेंटीमीटर गहराई आकार के जो गड्ढे तैयार किये गये है|
उन गड्ढों को 25 से 30 किलोग्राम अच्छी तैयार गोबर की खाद, 500 ग्राम सुपर फॉस्फेट तथा 100 ग्राम मिथाईल पैराथियॉन पाऊडर को अच्छी तरह से मिट्टी में मिला कर पौधे लगाने के 15 से 20 दिन पहले भर दें और रोपण से पहले सिंचाई कर देते है।

अमरूद की खेती में पेड़ों को खाद व उर्वरक उनके आयु के अनुसार दिया जाता है । पहले साल में प्रति पेड़ N : P : K – 50 : 30 : 50 के अनुपात में दें । इसी क्रम में आने वाले सात साल तक – दुगुना,तिगुना, चौगुना—— करके बढ़ाते जाएँ । नीचे तालिका में वर्ष के अनुसार अमरूद की खेती में कितनी खाव व उर्वरक देना है दर्शाया गया है । सात वें साल N : P : K – 350 : 210 : 350 ग्राम प्रति पौधा दें । फ़ोस्फोरस की पूरी मात्रा पेड़ों के चारों ओर 30 सेमी नली बनाकर दें । नाइट्रोजन व पोटाश की मात्रा पेड़ों के फैलाव में चारों ओर छिड़ककर दें ।

पौधों की आयु  (वर्षों में) गोबर खाद(कि.ग्रा.)नत्रजन (ग्राम) स्फुर(ग्राम)पोटाश (ग्राम)
110503050
22010060100
33015090150
440200120200
550250150250
6 साल से ऊपर60300180300

उपरोक्त खाद एवं उर्वरकों के अतिरिक्त 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट, 0.4 प्रतिशत बोरिक ऐसिड एवं 0.4 प्रतिशत कॉपर सल्फेट का छिड़काव फूल आने के पहले करने से पौधों की वृद्धि एवं उत्पादन बढ़ाने में सफलता मिलेगी।

Symptoms of micronutrient deficiency in guava cultivation (अमरूद की खेती में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के लक्षण) –

आमतौर पर अमरूद में जिंक या बोरॉन की कमी देखी जाती है|
जिंक-
– जिंक की कमी से ग्रसित पौधों की बढ़त रुक जाती है, टहनियाँ ऊपर से सूखने लगती हैं, कम फूल बनते हैं और फल फट जाते हैं –
– सर्दी व वर्षा ऋतु में फूल आने के 10 से 15 दिन पहले मृदा में 800 ग्राम जिंक सल्फेट प्रति पौधा डालना चाहिए|
– फूल खिलने से पहले दो बार 15 दिनों के अन्तराल पर 0.3 से 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट का छिड़काव किया जाना चाहिए|
बोरॉन-
– फलों का आकार छोटा रह जाता है और पत्तियों का गिरना आरम्भ हो जाता है|
– अधिक कमी होने से फल फटने लगते हैं|
– पौधे में बोरॉन की कमी होने पर शर्करा का परिवहन कम हो जाता है और कोशिकाएँ टूटने लगती हैं|
– गुजरात व राजस्थान में नयी पत्तियों पर लाल धब्बे पड़ जाते हैं, जिसे फैटियो रोग कहा जाता है|
– फूल आने के पहले 0.3 से 0.4 प्रतिशत बोरिक अम्ल का छिड़काव करना चाहिए|
– फल की अच्छी गुणवत्ता के लिए 0.5 प्रतिशत बोरेक्स (गर्म पानी में घोलने के बाद) का जुलाई से अगस्त में छिड़काव करना लाभदायक है,इससे फलों में गुणवत्ता आती है|

निराई गुड़ाई व खरपतवार की रोकथाम

अमरूद के पौधों के चारों ओर फावड़े से थाला बना दें । अनावश्यक उग आए खरपतवारों को उखाड़ कर मवेशियों के चारे के रूप में खिला दें । अनरगल उगे खरपतवार पौधे के पोषक तत्वों को शोषित करते रहते हैं । इन खरपतवारों के नष्ट हो जाने से पोषक तत्व डायरेक्ट पौधे को मिलते हैं । जिससे पौधे में अच्छी बढ़वार होती है ।कटाई-छंटाई एवं सधाईजड़ के पास निकलने वाली शाखाओं को हटाते रहना चाहिए । बरसात के समय अनावश्यक शाखाओं को काट दें। अफलन व रोगी डालियों को निकाल दें । कटे हुए डालियों पर कवकनाशी का लेप कर दें । अमरूद के पेड़ों में फलन आरम्भ हो जाए । बांस के लट्ठों से सधाई कर दें । आँधी तूफ़ान के कारण व फलों के वजन से डालियाँ ना टूट जाएँ । फलों की गुणवत्ता के लिए बैग्स में भी भर देना चाहिए । इससे फल डालियों व पत्तों के रगड़ में ख़राब नही होते । फलों की क्वालिटी बढ़िया रहती है ।

पपीते के कीट व नियंत्रण के उपाय 

लाल मक्खी: इस कीडे के आक्रमण से फल खुरदरे व काले रंग के हो जाते है. पत्तियों पीली पड कर गिर जाती है. इस कीडे की रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास या मेटासिस्टाक्स के 0.03 फीसदी का छिड़काव करना चाहिए।

माहू: यह कीडा पत्तियां का रस चूसता है. इस की रोकथाम के लिए शुरूआत अवस्था में ही 0.03 फीसदी मोनोक्रोटोफास या फास्फेमिडान का छिड़काव करना चाहिए.

आर्द्रगलन: इस बीमारी से पौधशाला में छोटे पौधों का तना जमीन के पास से सड़ जाता है और वे मुरझा कर गिर जाते है. इस बीमारी की रोकथाम के लिए बोर्डो मिश्रण 3 फीसदी या जिनेब 0.3 फीसदी का छिड़काव करें. साथ ही मिट्टी को फार्मेल्डिहाइड के 2.5 फीसदी घोल से उपचारित करें व बीजों को थाइरम दवा की 2 ग्राम मात्रा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बोएं.

वाइरस बीमारियां: सभी प्रकार की वाइरस बीमारियां पत्ती का रस चूसने वाले कीड़ों द्वारा फैलाई जाती है। पपीते में प्रमुख रूप से 3 वायरस बीमारियां मोजैक, डिस्टारसन रिंग स्पाट वायरस और लीफ कर्ल वाइरस लगती है। मोजैक बीमारी से पत्तियों का हरापन कम हो जाता है व पत्तियां छोटी होकर सिकुड़ जाती है।

रोगग्रस्त पत्तियों में फैले हुए दाग पड़ जाते है। कुछ दिनों बाद पौधा मर जाता हैं। डिस्टारसन रिंग स्पाट वाइरस से पपीते का सब से ज्यादा नुकसान होता है। प्रभावित पौधें की पत्तियां कटी फटी सी दिखाई देती हैं और पौधों की बढ़वार रूक जाती हैं। लीफ कर्ल वाइरस से पत्तियां पूरी तरह से मुड जाती हैं और न तो पौधे बढ़ पाते हैं और न ही फल लगते है। रोकथाम के लिए बीमारीग्रस्त पौधों को खत्म कर दें।

कीड़ों की रोकथाम के लिए मेटासिस्टाक्स या मेलाथियान के 0.05 फीसदी घोल का 16 दिन के अंतर पर छिड़काव करना चाहिए। ऐसे इलाकों में, जहां वाइरस बीमारियों का डर रहता है, वहां पौधशाला या नर्सरी सिंतबर अक्तूबर के महीनों में लगाएं। नर्सरी में पौधों पर दो चार पत्तियां आते ही उन पर नियमित कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करते रहें। बीमार पौधों को निकाल कर गड्ढें में दबा दें या जला दें। बागों के नजदीक पुराने विषाणुग्रसित पौधों को नष्ट कर दें, क्योंकि इन पौधों में वाइरस कई सालों तक बने रहते है और नए बागों में रोग फैलने का स्त्रोत बन जाता हैं। बागों के नजदीक ऐसी सब्जियां न लगाएं, जिनमें तेला, चेंपा या सफेद मक्खी का प्रकोप होता हो, क्योंकि ये कीट ही मुख्य रूप से वाइरस एक पौधें से दूसरे पौधें तक ले जाते हैं।

तना या पद विगलन रोग यानी स्टेम या फुट राट: यह एक मिट्टी जनित बीमारी है, जिससे फफूंद मिट्टी में पैदा होते हैं। इस बीमारी के असर से मिट्टी की सतह से तनों में सड़न शुरू हो जाती है व छाल पीली पड जाती हैं और मुरझा कर गिर जाती हैं। तना सड़ जाता है और आखिर में पौधा गिर जाता हैं। इस बीमारी का प्रकोप बारिश के मौसम में या नमी ज्यादा होने पर ज्यादा होता हैं। खासकर ऐसे खेतों में, जिन में जल निकास का इंतजाम ठीक नहीं होता। इस बीमारी की रोकथाम के लिए जमीन से 60 सेंटीमीटर की ऊंचाई तक तनों पर बोर्डोपेस्ट की पुताई करना चाहिए। बीमार पौधों का फौरन उखाड़कर दबा या जला देना चाहिए। बारिश या सिंचाई का पानी तने के सीधे संपर्क में नहीं आना चाहिए। इस के लिए पौधों के तनों के चारों ओर मिट्टी चढ़ा देना चाहिए। कॉपर आक्सीक्लोराइड 2 ग्राम एक लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए। इस से बीमारी दूसरे पौधों पर नहीं फैलती।

किन बातों का रखें ध्यान

पौधों में जब फल आते हैं उस समय देखरेख सबसे ज्यादा करनी होती है। जहां पर एक साथ कई फसल होते हैं उसमें से सिर्फ एक फल ही रखा जाता है बाकी सभी फलों को तोड़ कर फेक दिया जाता है। जब फसल थोड़े बड़े हो जाते हैं तो उनकी बैगिंग करनी होती है, जिसमें हर फल पर 5 से 7 रुपए का खर्च आता है।” फलों की बैगिंग इस लिए करते है ताकि फलों पर दाग न पड़ें पक्षी नुकसान न पहुंचाए। बैगिंग करने से फल पूरी तरह से सुरक्षित रहता है।

ध्यान देने योग्य बातें –

  • फल बैगिंग करते समय, बैगिंग सामग्री की गुणवत्ता का ध्यान रखें (जैसे फोम नेट, एंटी फॉग पॉलिथीन और न्यूज़पेपर)
  • फल को बैगिंग करते समय शाखा से लगे फल के डंठल को नुकसान ना पहुंचाएं, डंठल को नुकसान होने से फल में पोषक तत्वों का प्रवाह रुक सकता है जिससे फल की वृद्धि और गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ता है।

प्र०- वीएनआर बिही में फलों के बैगिंग से फलों की गुणवत्ता कैसे बेहतर हो सकती है?

  • बैगिंग फलों को उसके विकास और विकास के दौरान किसी भी भौतिक छती‌‌ से बचाने में मदद करता है और फल को बगीचे से उपभोक्ताओं तक पहुंचने में फल की गुणवत्ता को बनाए रखता है।
  • एंटी फॉग पॉलिथीन बैग का उपयोग फलों को किसी भी तरह के कीट (जैसे फल मक्खी) संक्रमण से मुख्य रूप से बचाता है ।
  • न्यूज़पेपर फलों में एक समान रंग को विकसित करने में मदद करता है, न्यूज़पेपर फलों में सनबर्न से होने वाली क्षति से भी बचाता है।
  • स्वस्थ एवं आकर्षक वी एन आर बीही फल ही बाजार से अच्छा मूल्य प्राप्त कर सकते हैं और अच्छा मूल्य किसान की आमदनी में बढ़ोतरी करता है, अतः उचित समय पर उचित तरीके से बैंकिंग करें, स्वस्थ एवं आकर्षक फल प्राप्त करके अच्छा लाभ कमायें।

पपीते की तुड़ाई कब करें

पपीत के पूर्ण रूप से परिपक्व फलों को जबकि फल के शीर्ष भाग में पीलापन शुरू हो जाए तब डंठल सहित इसकी तुड़ाई करनी चाहिए। तुड़ाई के बाद स्वस्थ, एक से आकार के फलों को अलग कर लेना चाहिए तथा सड़े-गले फलों को अलग हटा देना चाहिए। 

वी एन आर बीही प्रजाति के अमरुद का एक स्वस्थ पेड़ आपको एक सीजन में करीब 60 किलो तक फल देता है।

प्रति एकड़ उत्पादन – 500 पेड़ X 60Kg = 30000Kg/30 टन

 
ये है खेती पर खर्च

दरअसल अमरूद की फसल को तैयार करने में एक पेड़ पर करीब 150 रुपए का खर्च आता है। 25 सालों तक एक एकड़ खेत में 5 लाख रुपए प्रति वर्ष अमरूद की खेती से आमदनी होते हैं।

पहला साल का खर्च :-

450 पौधे x 150 =

उत्पादन लागत रू. 1,00,000/- प्रति एकड़

दो साल के बाद उत्पादन शुरू होगा। वी एन आर बीही प्रजाति के अमरुद का एक स्वस्थ पेड़ आपको एक सीजन में करीब 60 किलो तक फल देता है।

कुल उत्पादन (क्विंटल/एकड़) =  500 पेड़ X 60Kg = 300क्विंटल/30 टन 

आय-व्यय:

उत्पादन लागतकुल आयविक्रय दरशुद्ध लाभ
रू. 4,00000/- प्रति एकड़रू. 1,200,000/- प्रति एकड़रू. 4,000/- प्रति कुन्टलरू. 8,00,000/- प्रति एकड़

ध्यान दें : यह बाजार पर घट एवं बढ़ भी सकता है ।

खास बात ये है कि आपका जितना भी पैसा लगेगा वो पहली दो फसलों में ही आपके पास वापस आ जाएगा। साथ में आप इन पौधों के बीच में सब्जी की खेती भी कर सकते हैं। अमरुद की इस किस्म से एक पौधे से कम से कम 20 किलो फल एक तुड़ाई में लिया जा सकता है। और ये कम से कम 50 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिकता है। इसी तरह आप एक एकड़ से कम से कम 9 लाख रुपए एक फसल में कमा सकते हैं।

वी एन आर बीही अमरूद बाजार बड़े शहरो  मे बेचने से बेहतर रेट मिलता है। VNR BIHI किस्म के अमरूदों की कीमत ₹150 से लेकर ₹370 किलो तक की है।

अमरूद की ये खास किस्म थाईलैंड से आई है। भारत में अभी इसकी पौध ही मिलती है। इन पौधों को प्राप्त करने के लिए आप डायरेक्टली VNR की नर्सरी से खरीद सकते हैं। अगर आप 1 से 10 पोधो तक खरीदते हैं तो ₹330 प्रति पौधे की कीमत से आपको यह मिल जाएंगे और पौधों की गिनती बढ़ने पर रेट भी कम होता जाता है।

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