परंपरागत फसलों की बजाय केले की खेती कर किसान ज्यादा लाभ कमा रहे हैं। किसानों के अनुसार धान व ईख की खेती करने की बजाय केले की खेती करना ज्यादा लाभदायक है। केले की खेती करने वाले किसान अन्य किसानों को भी केले की खेती करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, वहीं बागवानी विभाग भी किसानों को केले की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। केले की फसल से ज्यादा पैदावार लेने के लिए किसान अब केले की प्रजाति ‘जी-9’ की खेती कर सकते हैं. केले की इस प्रजाति की खेती करने पर किसानों को कम लागत में अधिक मुनाफा हो रहा हैं. ‘कृषि विज्ञान केंद्र’ के वैज्ञानिक भी केले की खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को ‘जी-9’ की ही खेती करने की सलाह दे रहे हैं. गौरतलब हैं कि किसान केले के इस किस्म के साथ आलू की भी खेती कर सकते हैं. वहीं आलू की पैदावार होने के बाद किसान खाली जमीन में हल्दी व अदरक की सहफसली खेती करके कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकते है. कृषि विज्ञान केंद्र के प्रक्षेत्र में केले की इस प्रजाति की खेती कर किसानों के प्रदर्शन के लिए लगाई गई है ताकि किसान फसल को देखकर स्वयं खेती करके लाभ उठा सकें ।
टिशू कल्चर से तैयार पौधों में रोपाई के 8-9 महीने बाद फूल आना शुरू होता है और एक साल में फसल तैयार हो जाती है इसलिए समय को बचाने के लिए और जल्दी आमदनी लेने के लिए टिशू कल्चर से तैयार पौधे को ही लगाएं ।
केले की खेती के लिए मिट्टी
केले की खेती के लिए जीवाश्म युक्त मिट्टी होनी चाहिए। केले के सही उत्पादन के लिए जीवाश्म युक्त दोमट मिट्टी, मटियार दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। यह मिट्टी इसलिए अच्छी होती है क्योंकि इसमें पानी आसानी से निकल जाता है। इसके साथ साथ मिट्टी का PH मान 6 से 7.5 होता है.
अच्छे उत्पादन के लिए 10 से 40 डिग्री सेल्सियम तापमान, वातावरण में 80 से 90 प्रतिशत नमी एवं स्वच्छ मौसम।
उन्नत प्रभेद जी-9 के लगभग 7 से 10 इंच ऊँचे ऊतक संवर्द्धित पौधे।
केले की रोपाई का उचित समय :-
1 जुलाई से 30 जुलाई के मध्य, 6X6 फीट की दूरी पर (1200/1400 पौध प्रति एकड़), पौध रोपाई के बाद हल्की सिंचाई ।
केले की खेती करने के लिए दोमट मिट्टी का चुनाव कर इसकी अच्छी से जुताई करें। इसके बाद मवेशी खाद, जैविक या वर्मी कंपोस्ट खाद डालकर दोबारा जुताई करें।
अन्तिम जुलाई के समय खेत में गोबर की खाद 200 कुंतल, एन.पी.के. (10ः26ः26) 150 किग्रा, यूरिया 50 किग्रा, म्यूरेट ऑफ पोटास 100 किग्रा तथा सूक्ष्य पोषक तत्व 20 किग्रा प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
इसके पूर्व खेत में पौधों को कीट-व्याधि से बचाव के लिए कृषि वैज्ञानिक की सुझायी दवा मिट्टी में डाल दें।
केले के खेतों में नमी बनी रहनी चाहिए। पौध रोपण के बाद सिचाई करना अति आवश्यक है।
- गर्मियों में 7 से 10 दिन के अंदर सिंचाई करनी चाहिए।
- सर्दियों में 12 से 15 दिन के अंदर सिंचाई कर लेनी चाहिए।
अक्टूबर से फरवरी तक के अन्तराल पर सिचाई करते रहना चाहिए।
मार्च से जून तक यदि केले के पौधों के पास पुवाल, गन्ने की पत्ती अथवा पॉलीथीन बिछा देने से नमी सुरक्षित रहती है, जिससे सिचाई की मात्रा भी आधी रह जाती है।
सिंचाई प्रणाली
केला लंबी अवधि का पौधा है। इसलिए जरुरी है सिंचाई का उचित प्रबंध हो। बेहतर किसान पौध रोपाई के दौरान ही बूंद-बूंद सिंचाई प्रणाली स्थापित करवा लें। सिंचाई में काफी बचत होगी । पानी कम लगेगा और मजदूरों की जरुरत नहीं रह जाएग। ड्रिप सिस्टम लगा होने पर कीटनाशनकों आदि छिड़काव के लिए भी ज्यादा मशक्कत नहीं करनी होगी।
प्रति एकड़ पौधा कि रोपाई : – G-9 केले की एक एकड़ में 1400 पौधों की बुआई होती है.।
सेहतमंद पौधों की रोपाई के लिए किसानों को पहले से तैयारी करनी चाहिए। जैसे गड्ढ़ों को जून में ही खोदकर उसमें कंपोस्ट खाद भर देना चाहिए। जड़ के रोगों से छुटकारा पाने के लिए पौधे वाले गड्ढे में ही नीम की खाद डालें। केंचुआ खाद डालने से अलग ही असर दिखता है। उन्होंने बताया कि केला लंबी अवधि का पौधा है। इसलिए सिंचाई का उचित प्रबंध होना जरूरी है। केले के पौधों को कतार में लगाएं तथा लगाते समय हवा और सूर्य की रोशनी का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए। रोपाई के 4-5 महीने बाद हर 2 से 3 माह में गुड़ाई कराते रहे। पौधे तैयार होने लगें तो उन पर मिट्टी जरूर चढ़ाई जाए।
इसके पूर्व खेत में पौधों को कीट-व्याधि से बचाव के लिए कृषि वैज्ञानिक की सुझायी दवा मिट्टी में डाल दें।
क्रम सं. | अवस्था | एन.पी.के. (12:32:16) (ग्राम) | यूरिया(ग्राम) | म्यूरेट ऑफ पोटाश (ग्राम) | सूक्ष्य पोषक पोटाश (ग्राम) |
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1. | पौध रोपड़ के 20 दिन बाद | 30 | 30 | – | – |
2. | पौध रोपड़ के 40 दिन बाद | 75 | 30 | 50 | – |
3. | पौध रोपड़ के 60 दिन बाद | 50 | 30 | 75 | – |
4. | पौध रोपड़ के 240 दिन बाद | 100 | 75 | 100 | – |
5. | पौध रोपड़ के 270 दिन बाद | – | 75 | 75 | – |
केले की फसल के खेत को स्वच्छ रखने के लिए समय पर निराई-गुड़ाई करने की आवश्यकता होती है, इससे पौधों को हवा एवं धूप आदि अच्छी तरह मिलता रहता है।
कई किसान केले में मल्चिंग करवा रहे है, इससे निराई गुड़ाई से छुटकारा मिल जाता है। लेकिन जो किसान सीधे खेत में रोपाई करवा रहे हैं, उनके लिए जरुरी है कि रोपाई के 4-5 महीने बाद हर 2 से 3 माह में गुड़ाई कराते रहे। पौधे तैयार होने लगें तो उन पर मिट्टी जरुर चढ़ाई जाए।
मिट्टी चढ़ाना:- वर्षा के बाद सदैव मिट्टी चढ़ना चाहिए क्योंकि पौधों के चारो तरफ की मिट्टी धुल जाती है तथा पौधा में घौद निकलने से नीचे की ओर कुछ झुक जाते है और तेज हवा में उनके उलट जाने की संभावना रहती है।
पत्तियों की कटाई व छटाई:- पौधा जैसे जैसे वृद्धि करता है नीचे की पत्तियां सूखती है। सूखी पत्तियों से फल भी क्षतिग्रस्त होते है। सूखी एवं रोगग्रस्त पत्तियों को तेज चाूके से समय समय पर काटते रहना चाहिए इस क्रिया से रोग का फैलाव एवं उसकी तीक्ष्णता घटती है। हवा एवं प्रकाश नीचे तक पहुंचता रहता है। जिससे कीटो की संख्या में भी कमी हो जाती है अधिकतम उपज के लिए 13 से 15 पत्तिया ही पर्याप्त होती है।
सहारा देना:- केला की खेती को तेज हवाओं से भी खतरा बना रहता है कई बार तो चक्रवात के प्रकोप से पूरी फसल ही बर्बाद हो जाती है। अतः लम्बी प्रजातियों में सहारा देना अति आवश्यक है। केले के फलो का गुच्छा भारी होने के कारण पौधे नीचे तरू झूक जाते है अगर उनको सहारा नहीं दिया जाता है तो वे उखड़ भी जाते है अतः दो बांसो को आपस में बांधकर कैची की तरह बना लेते है तथा फलो के गुच्छे के बीच से लगाकर सहारा देते है। गहर निकलते समय ही सहारा देना लाभकट होता है।
केले की कटाई-छटाई
केले के रोपण के 2 माह के अन्दर ही बगल से नई पुत्तियाँ निकल आती है।
पुत्तियों को समय-समय पर काटकर निकलते रहना चाहिए।
रोपण के 2 माह बाद मिट्टी से 30cm गोलाई से 25 cm ऊँचा चबूतरा नुमा आकृति बना देनी चाहिए।
इससे पौधे को सहारा मिल जाता है, साथ ही बांसों को कैची बना कर पौधों को दोनों तरफ से सहारा देना चाहिए।
केले की खेती में रोगों का नियंत्रण
केले की फसल में पर्ण चित्ती या लीफ स्पॉट, गुच्छा शीर्ष या बन्ची टाप,एन्थ्रक्नोज और तनागलन हर्टराट आदि रोग लगते हैं। इसके नियंत्रण के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइट 0.3% का छिडकाव करना चाहिए। मोनोक्रोटोफास 1.25 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिएI
केले की खेती में लगने वाले कीट और उसका नियंत्रण
केले में पत्ती बीटिल (बनाना बीटिल), तना बीटिल कीट लगते हैं, इसके नियंत्रण के लिए मिथाइल ओ-डीमेटान 25EC 1.25 ml प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करना चाहिएI
कारबोफ्युरान अथवा फोरेट या थिमेट 10 जी दानेदार कीटनाशी प्रति पौधा 25 ग्राम का इस्तेमाल करना चाहिएI
रोपाई के बाद लगभग 11-12 माह बाद तोड़ाई के लिए तैयार हो जाती है. बाजार की मांग और बाजार की दूरी को देखते हुए किसानों को फसल की तोड़ाई करनी चाहिए. बाजार दूर हो तो 70-75 प्रतिशत पके फलों को तोड़ना चाहिए. इससे फलों के खराब होने का डर नहीं रहता
फूल आने के 80-90 दिन बाद जब फलियाँ गोल हो जाये तो घार की कटाई करें। पैदावार 375 से 400 कुन्तल प्रति एकड़।
मद | व्यय (रू. प्रति एकड़) |
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खेत की तैयारी | 6000/- |
पौध | 17000/- |
खाद एवं उर्वरक | 15000/- |
सिंचाई | 18000/- |
फसल सुरक्षा | 17000/- |
बाँस | 15000/- |
मजदूरी | 40000/- |
अन्य व्यय | 12000/- |
कुल | 140000/- |
आय व्यय / एकड़ :
उपज | खर्च | आय | शुद्ध लाभ |
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375 कुंतल | Rs – 1,40,000 | Rs – 5,62,500 | Rs – 4,22,500 |
मार्केट में 700 से 1500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिकता है
ध्यान दें : यह बाजार पर घट एवं बढ़ भी सकता है ।
केले को पकाने के लिए घर को किसी बन्द कमरे रखकर पकाया जाता है।
जिसे केले की पत्तियों से ढक देते है और एक कोने में उपले अथवा अंगीठी जलाकर रख देते है।
कमरे को मिट्टी से सील बन्द कर देते है।
यह लगभग 48 से 72 घंटे में कमरें केला पक जाता है।