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1 हेक्टेयर = 2.4एकड़
1 एकड़ = 100 dismil
1 एकड़ = 43560 वर्ग फुट
हमारे देश में वैसे तो सभी धर्म व सम्प्रदाय के लोग रहते हैं और सभी धर्मों में विभिन्न प्रकार के व्यंजन खाये व बनाये जाते हैं। इन सभी धर्मों में जिस फसल का सबसे ज्यादा उपयोग और उपभोग किया जाता है, वह हैः- गेहूँ। जी हाँ हमारे देश में गेहूँ सबसे ज्यादा उपयोग में आने वाला खाद्य है और भारत विश्वभर में दूसरे सर्वाधिक गेहूँ का उत्पादक है ।
रबी की फसलों में गेहूँ की फसल काफी महत्वपूर्ण है। यह विश्व की जनसंख्या के लिए लगभग 20 प्रतिशत आहार कैलोरी की पूर्ति करता है। गेहूँ खाद्यान्न फसलों के बीच विशिष्ट स्थान रखता है। कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन गेहूँ के दो मुख्य घटक हैं। गेहूँ में औसतन 14 प्रोटीन व 72 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट होता है।
गेहूँ की एक ऐसी फसल है जिसकी हर चीज काम में आती है। गेहूँ के दाने, दानों को पीस कर प्राप्त हुआ आटे से रोटी, डबलरोटी, कुकीज, केक, दलिया, पास्ता, सिवईं, नूडल्स आदि बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। गेहूँ का किण्वन कर शराब और जैवईंधन बनाया जाता है। गेहूँ के भूसे को पशुओं के चारे या घरों के छप्पर निर्माण की सामग्री के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
भारत में गेहूँ बहुतायत में उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, बिहार सहित मध्यप्रदेश व अन्य राज्यों में उगाया जाता है।
भूमि का चयन
सिंचाई के क्षेत्रों में गेहूं की खेती हर प्रकार की भूमि में की जा सकती है, किन्तु अच्छी पैदावार के लिए बलुई दोमट मिट्टी से चिकनी दोमट समतल एवं जल निकास वाली उपजाऊ भूमि अधिक उपयुक्त है| गेहूं के लिये अधिक लवणीय एवं क्षारीय भूमि उपयुक्त नहीं है| जहां पर एक मीटर तक कठोर पड़त हो, वहां गेहूं की खेती नहीं करनी चाहिए|
उपयुक्त जलवायु
गेहूं के बीज अंकुरण के लिए 20 से 25 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान उचित रहता है| गेहूं की बढवार के लिए 27 डिग्री सेन्टीग्रेड से अधिक तापमान होने पर विपरीत प्रभाव होता है और पौधो की सुचारू रूप से बढवार नहीं हो पाती है, क्योंकि तापमान अधिक होने से उत्स्वेदन प्रक्रिया द्वारा अधिक उर्जा की क्षति होती है तथा बढवार कम रह जाती है| जिसका फसल उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है| फूल आने के समय कम तथा अधिक तापमान हानिकारक होता है|
उन्नत किस्में
गेहूं उत्पादक किसान बन्धुओं को अपने क्षेत्र की प्रचलित और अधिकतम उपज देने वाली के साथ-साथ विकार रोधी किस्म का चयन करना चाहिए| ताकि इस फसल से अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सके कुछ प्रचलित और उन्नत किस्में इस प्रकार है, जैसे-
सिंचित अवस्था में समय से बुवाई- एच डी- 2967, एच डी- 4713, एच डी- 2851, एच डी- 2894, एच डी- 2687, डी बी डब्ल्यू- 17, पी बी डब्ल्यू- 550, पी बी डब्ल्यू- 502, डब्ल्यू एच- 542, डब्ल्यू- एच- 896 और यू पी- 2338 आदि प्रमुख है, इनका बुवाई का उपयुक्त समय 10 नवम्बर से 25 नवम्बर माना जाता है|
सिंचित अवस्था में देरी से बुवाई- एच डी- 2985, डब्ल्यू आर- 544, राज- 3765, पी बी डब्ल्यू- 373, डी बी डब्ल्यू- 16, डब्ल्यू एच- 1021, पी बी डब्ल्यू- 590 और यू पी- 2425 आदि प्रमुख है, इनका बुवाई का उपयुक्त समय 25 नवम्बर से 25 दिसम्बर माना जाता है|
असिंचित अवस्था में समय से बुवाई- एच डी- 2888, पी बी डब्ल्यू- 396, पी बी डब्ल्यू- 299, डब्ल्यू एच- 533, पी बी डब्ल्यू- 175 और कुन्दन आदि प्रमुख है|
लवणीय मृदाओं के लिए- के आर एल- 1, 4 व 19 प्रमुख है|
अभी तक की सर्वाधिक पैदावार वाली गेहूं की नई विकसित किस्म-करण वंदना (DBW 187)
गेंहूं की डीजी 09 किस्म :-
इस तकनीक से एक एकड़ में करीब 2 किलो गेहूं की बुआई करने पर मिलती है 40 कुंतल पैदावार –
55/60 kg per Acar Seed required.
खेती की तैयारी
भारी मिट्टी के खेतों की तैयारी- भारी मिट्टी के खेतों में मिट्टी पलटने वाले हल से पहली जुताई गर्मी में उत्तर से दक्षिण में कर के खेत को खाली छोड़ दें| वर्षा के दिनों में दो तीन बार आवश्यकतानुसार खेत की जुताई करते रहें, जिससे खेत में खरपतवार न जमें| वर्षा उपरान्त एक जुताई और करके सुहागा लगा कर खेत को बोनी के लिए तैयार कर दें|
हल्की मिट्टी के खेतों की तैयारी- हल्की मिट्टी वाले खेतों में गर्मी की जुताई न करें| वर्षा के दिनों में तीन बार आवश्यकतानुसार जुताई करें व सुहागा लगाकार खेत को बोनी के लिये तैयार करें| सिंचाई और सघन खेती वाले क्षेत्रों में उपरोक्त दोनों प्रकार की भूमि की जुताइयाँ आवश्यकतानुसार करे|
बीज उपचार
गेहूं की खेती अधिक उपज के लिए बीज अच्छी किस्म का प्रमाणित ही बोना चाहिये तथा बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम थाइम या 2.50 ग्राम मैन्कोजेब से उपचारित करना चाहिये| इसके उपरान्त दीमक नियंत्रण के लिए क्लोरोपाइरीफोस की 4 मिलीलीटर मात्रा से तथा अंत में जैव उर्वरक एजोटोबैक्टर व पी एस बी कल्चर के तीन-तीन पैकिट से एक हैक्टर में प्रयोग होने वाले सम्पूर्ण बीज को उपचारित करने के बाद बीज को छाया में सूखा कर बुवाई करनी चाहिये|
बुवाई का समय
उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में सिंचित दशा में गेहूं बोने का उपयुक्त समय नवम्बर का प्रथम पखवाड़ा है| लेकिन उत्तरी-पूर्वी भागों में मध्य नवम्बर तक गेहूं बोया जा सकता है| देर से बोने के लिए उत्तर-पश्चिमी मैदानों में 25 दिसम्बर के बाद तथा उत्तर-पूर्वी मैदानों में 15 दिसम्बर के बाद गेहूं की बुवाई करने से उपज में भारी हानि होती है| इसी प्रकार बारानी क्षेत्रों में अक्टूबर के अन्तिम सप्ताह से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक बुवाई करना उत्तम रहता है| यदि भूमि की ऊपरी सतह में संरक्षित नमी प्रचुर मात्रा में हो तो गेहूं की बुवाई 15 नवम्बर तक कर सकते हैं|
बीजरोपणः-
उत्पादन बढ़ाने के लिए गुणवत्तापूर्ण बीज एक महत्वपूर्ण चीज है। बीज के रोपण से पूर्व बीजोपचार अतिआवश्यक होता है। बोआई के समय जमीन में नमी होना बहुत ज्यादा जरूरी है। तापमान 20-25 डिग्री के बीच होना चाहिए इससे अधिक या कम तापमान बीजों के अंकुरण के लिए सही नहीं होता है। खेत की जुताई हल या आधुनिक उपकरण से करनी चाहिए ताकी मिट्टी पलट जाये और बीजों को ठीक तरीके से रोपा जा सके। गेहूँ की बोआई का सही समय 15 से 30 नवंबर के मध्य माना जाता है। इसके बाद बोआई की जाए तो उपज में भारी कमी आने लगती है। गेहूँ के बीज की बोआई के लिए 5-6 से0मी0 गहराई सही मानी जाती है। इससे ज्यादा या कम गहराई में बीजों का अंकुरण नहीं हो पाता है। गेहूँ की बोआई आमतौर पर हल के पीछे कूंड में, सीड ड्रिल द्वारा या हल के पीछे नाई बांध कर डिब्बर विधियों द्वारा की जाती है। इन सभी विधियों में सीड ड्रिल द्वारा बोआई सब से अच्छी विधि मानी जाती है, जो एक निश्चित अंतराल पर बीज का रोपण करती है।
गेहूँ के लिए बीज की दर बोने की विधि और समय पर निर्भर है। आमतौर पर अगेती फसल के लिए 100 कि0ग्रा0 बीज प्रति हैक्टेयर व पछेती फसल के लिए 125 कि0ग्रा0 बीज प्रति हैक्टेयर सही रहता है। फसलों की बीज जनित रोगों से बचाव के लिए बीजों को 2.5 ग्राम प्रति कि0ग्रा0 की दर से थीरम, कार्बेन्डाजीन, बीटावैक्स आदि दवाईयों से उपचारित किया जा सकता है। बीजों को दीमक से बचाने के लिए क्लोरोपाइरीफॉस 4 मिली/किग्रा मात्रा, कीटों के प्रकोप से बचाने के लिए एमिडोक्लोप्रिड 1 मिली/किग्रा मात्रा से बीजों को उपचारित किया जा सकता है। खेत खरपतवार रहित हो इसके लिए बीजों में मिलावट न हो एवं बीजों की साफ सफाई का ध्यान रखना चाहिए साथ ही बीजों को मान्यता प्राप्त संस्थानों, विश्वविद्यालयों से ही खरीदना चाहिए एवं बीजों की खरीद का बिल हमेशा लेना चाहिए।
सिंचाईः-
साधारणतः गेहूँ की फसल को 5-6 बार सिंचाई की जरूरत होती है। सामन्यतः माना जाता है कि जब तक मिट्टी का लड्डू बनता रहे तब तक सिंचाई नहीं करनी चाहिए अर्थात जब मिट्टी में नमी है, उसके बाद ही सिंचाई करनी चाहिए। बीज रोपण से पहले एक सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। गेहूँ की फसल को साढें चार माह की माना जाता है, एवं जब भी फसल में अवस्था परिवर्तन होता है तब सिंचाई की जानी चाहिए
- पहली सिंचाई बोने के 20 से 25 दिन बाद (यह सबसे महत्वपूर्ण)
- दूसरी सिंचाई बोआई के लगभग 40-50 दिन बाद
- तीसरी सिंचाई बोआई के लगभग 60-70 दिन बाद
- चौथी सिंचाई फूल आने की अवस्था अर्थात बोआई के 80-90 दिन बाद
- पांचवी सिंचाई बोने के 100-120 दिन बाद
उर्वरक:-
किसी भी प्रकार की खेती में खाद और उर्वरक का निर्धारण मिट्टी जांच के बाद ही किया जाता है। गेहूँ की फसल में आमतौर पर 100-120 कि0ग्रा0 नाइट्रोजन, 20 कि0ग्रा0 फॉस्फोरस और 30 कि0ग्रा0 पोटाश प्रति हैक्टेयर दिया जाता है। पोषक तत्वों का निम्न प्रकार देना चाहियेः- आधा नाइट्रोजन और पूरी फॉस्फोरस (डीएपी के रूप में) व पोटाश बोआई के समय छिड़काव करें। आधा नाइट्रोजन 25-30 दिन बाद निराई -गुड़ाई व पहली सिंचाई के बाद छिड़काव करें। मिट्टी में यदि जिंक की कमी हो तो बुवाई के समय या खड़ी फसल में 25 किग्रा/हैक्टेयर जिंकसल्फेट का छिड़काव किया जा सकता है। जिससे दाना चमकीला व मोटा होता है।
खरपतवार से मुक्तिः-
गेहूँ की फसल को खरपतवार से बचाने के लिए इसका रोकथाम खुरपी से किया जा सकता है। सल्फो स्लफयूरान 24 ग्राम प्रति हैक्टयर 400 से 500 लीटर पानी में मिलाकर बीजरोपण के 30 से 35 दिन पर छिडकाव कर रोकथाम की जा सकती है।
रोग:- गेहूँ में गेरूई और मंडुआ रोग लग जाता है, जिसकें लिए अच्छी किस्म के बीज में कीटनाशक क्षमता पाई जाती हैं एवं बीजोपचार से इन रोगों से बचा जा सकता हैा जैविक उपचार से भी रोग की रोकथाम की जा सकती हैा जैस-नीम की पति, नीम का व तेल गोमुत्र आदि का छिडकाव किया जा सकता हैा
बोआई में देरी होने पर सामान्य अरहर और गेहूँ फसल चक्र अपनाना सही रहता है।
गेहूं की खेती में अनेकों प्रकार के कीट जिनमें दीमक, आर्मी वर्म, एफिड एवं जैसिडस तथा चूहे नुकसान पहुँचाते है| भूमि की तैयारी करते समय 20 से 25 किलोग्राम एन्डोसल्फान भुरक देना चाहिये| यदि दीमक का प्रकोप खड़ी फसल में हो तो क्लोरीपाइरीफोस की 4 लीटर प्रति हेक्टेयर मात्रा सिंचाई के साथ दे देनी चाहिए| रस चूसने वाले कीटो के नियंत्रण के लिए इकालक्स की 1 लीटर मात्रा का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये|
गेहूं की खेती में कई तरह की बिमारियों का भी प्रकोप होता है, जैसे- झुलसा एवं पत्ती धब्बा, रोली रोग, कण्डवा, मोल्या धब्बा के लिए मेन्कोजेब 2 किलोग्राम, रोली राग के लिए गंधक का चूर्ण 25 किलोग्राम या 2 किलोग्राम मैन्कोजेब, कन्डुले के लिए बीज का फहूंदनाशक जैसे थीरम या वीटावैक्स से उपचार, मोल्या रोग के लिए कार्बोफ्यूरोन 3 प्रतिशत रसायन व ईयर कोकल एवं टुन्डू रोग के लिए बीज को नमक के 20 प्रतिशत से उपचारित कर बुवाई करनी चाहिये| चूहों के नियंत्रण हेतु एल्युमिनियम फास्फाइड या राटाफीन की गोलियां प्रयोग करनी चाहिये|
कटाई एवं मॅडाई
जब पौधे पीले पड़ जाये तथा बालियां सूख जाये तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिये| जब दानों में 15 से 20 प्रतिशत नमी हो तो कटाई का उचित समय होता है| कटाई के पश्चात् फसल को 3 से 4 दिन सूखाना चाहिये तथा मंडाई करके अनाज में जब 8 से 10 प्रतिशत नमी रह जाये तो भंडारण कर देना चाहिये|
पैदावार
गेहूं की फसल से उपज किस्म के चयन, खाद और उर्वरक के उचित प्रयोग और फसल की देखभाल पर निर्भर करती है| लेकिन सामान्यतः उपरोक्त वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर 16 से 28 कुन्तल प्रति एकड़ तक अनाज की उपज प्राप्त की जा सकती है|
गेहूं की खेती से अधिक पैदावार के लिए आवश्यक बिंदु-
1. गेहूं की खेती के लिए शुद्ध एवं प्रमाणित बीज की बुआई बीज शोधन के बाद की जाए|
2. प्रजाति का चयन क्षेत्रीय अनुकूलता एवं समय विशेष के अनुसार किया जाए|
3. गेहूं की खेती हेतु दो वर्ष के बाद बीज अवश्य बदल दीजिए|
4. संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर सही समय पर उचित विधि से किया जाए|
5. क्रान्तिक अवस्थाओं (ताजमूल अवस्था एवं पुष्पावस्था) पर सिंचाई समय से उचित विधि एवं मात्रा में की जानी चाहिए|
6. गेहूं की खेती में कीड़े एवं बीमारीयों से बचाव हेतु विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए|
7. गेहूं की खेती में कीट और रोगों का प्रकोप होने पर उसका नियंत्रण समय से किया जाना चाहिए|
8. गेहूं की खेती के जीरोटिलेज एवं रेज्ड वेड विधि का प्रयोग किया जाए|
9. गेहूं की खेती हेतु खेत की तैयारी के लिए रोटवेटर हैरो का प्रयोग किया जाना चाहिए|
10. गेहूं की खेती में अधिक से अधिक जीवांश खादों का प्रयोग किया जाना चाहिए|
11. गेहूं की खेती के लिए यथा सम्भव आधी खादों की मात्रा जीवांश खादों से पूरी की जानी चाहिए|
12. किसी भी प्रकार की खाद का अंधाधुंध प्रयोग न करें उनकी संतुलित मात्रा फसल के लिए अच्छी रहती है|
13. गेहूं की खेती हेतु जिंक और गंधक की कमी वाले खेतों में बुवाई से पहले इनकी संतुलित मात्रा अवश्य डालें|
सुरक्षित भंडारण हेतु दानों में 10-12 प्रतिशत से अधिक नमी नहीं होना चाहिए। भंडारण के पूर्ण कमरो को साफ कर लें और दीवारों व फर्श पर मैलाथियान 50 प्रतिशत के घोल को 3 लीटर प्रति 100 वर्गमीटर की दर से छिड़कें। अनाज को बुखारी, कोठिलों या कमरे में रखने के बाद एल्युमिनियम फास्फाइड 3 ग्राम की दो गोली प्रति टन की दर से रखकर बंद कर देना चाहिए।